________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 93 [ सर्वाः-श्रुत्वा' ससम्भ्रममुत्तिष्ठन्ति ] / राजा--( स्वगतम् ) अहो धिक् ! कथमपराद्धस्तपस्विनामस्मि / भवतु / प्रतिगच्छामि तावत् / सख्यो-महाभाभ ! इमिणा हथिसम्भमेण पजाउला म्ह / ता भणुजाणीहि णो उडअगमणे / [महाभाग ! अनेन हस्तिसम्भ्रमेण पर्याकुलाः स्मः, तदनुजानीहि न उटजगमने"]। अनुसूया-(शकुन्तला प्रति-) हला सउन्तले ! पजाउला अन्जा गोदमी भविस्सदि, ता एहि सीग्घं एकत्था होस / [हला शकुन्तले ! पर्याकुलाऽऽ- गौतमी भविष्यति, तदेहि शीघ्रमेकस्था भवामः ] / अपराद्धः = कृतापराधः / हस्तिनः सम्भ्रमस्तेन = गजत्रासेन / पर्याकुलाः = व्याकुलीभूताः, अनुजानीहि = अनुमति देहि / उटजे = पर्णशालायां / गमने : अभिगमने / नः = अरमान् / पर्याकुला = चिन्तातुरा, गौतमी = आश्रमवृद्धा [सब-घबड़ा कर उठ खड़ी होती हैं / राजा-[ मन ही मन ] ओह, मुझे धिक्कार है ! मैंने तपस्वियों का यह बड़ा अपराध किया है। मेरे ही कारण सैनिकों के ये सब उपद्गव यहाँ हो रहे हैं / अच्छा मैं जाता हूँ। दोनों सखियाँ-महाभाग ! हाथी के इस उत्पात से हम लोग भी घबड़ा गई हैं / अतः हम लोगों को अपनी कुटी में जाने की अनुमति दीजिए। अनसूया- ( शकुन्तला के प्रति ) सखि शकुन्तले ! आर्या गौतमी हम लोगों के लिए व्याकुल व चिन्तित होंगी। अतः आओ, हम सब एक ही जगह एकत्रित हो जाएँ / अर्थात्-अपनी आश्रम की कुटी में ही चल कर बैठे। 1 'कर्ण दत्वा किञ्चिदिव सम्भ्रान्ताः'। 2 'आत्मगतं'। 3 'सैनिका अस्मदन्वेषिणस्तपोवनमुपरुन्धन्ति / भवतु / प्रतिगमिष्यामस्तावत्' / 4 'गमनस्स' [गमनाय ] 1 5 क्वचिन /