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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 77 राजा-'अस्त्येवाऽन्यसमाधिभीरुत्वं देवानां / ततस्ततः ? / अनसूया-तदो वैसन्तावदाररमणीए समए उम्मादहेदुअं ताए रूवं पेक्खिअ.........। (-इयोक्ते लँजा नाटयति)। [ततो वैसन्तावताररमणीये समये उन्मादहेतुकं तस्या रूपं प्रेक्ष्य ... ... .( इत्योक्ते लजां नाटयति ) ] / राजा-पुरस्तादवगम्यत एव / सर्वथा अप्सरःसम्भवैषा ? / अनसूया-अध इं!। [अथ किम् ] / अन्येषां-समाधेः = तपसः। ततस्ततः = अग्रे किं-'जातं' / वसन्तस्य = वसन्ततॊः। अवतारेण = आविर्भावेण, रमणीये = सुन्दरे, समये = काले, उन्मादस्य = चित्तविकृतेः, हेनुकं = हेतुभूतम, तस्याः = मेनकायाः,रूप = सौन्दर्यम् / इति = इत्येतावन्मात्रेण, अधांत = अर्द्धमुक वा मध्य एव / विच्छ दिते वाक्ये, लजा नाटयति = लजिताऽभूत् / अग्रेऽस्यार्थस्यालीलप्रायत्वात् / पुरस्तात् = अने, अवगम्यते = ज्ञायते एव / अप्सरःसम्भवा = अप्सरोजाता। तपस्या से शङ्कित हो देवताओं ने उनकी तपस्या में विघ्न करने के लिए मेनका नामक अप्सरा को उनके पास भेजा। राजा-ठीक है, देवता लोग तो दूसरे की समाधि एवं तपस्या से सदा डरते ही रहे हैं / हाँ, फिर आगे क्या हुआ ? / अनसूया-तब वसन्त ऋतु के आगमन से जब चारों ओर बहार हो रही थी, ऐसे रमणीय मनोहर व सुहावने समय में मेनका के उन्माद (उमंग) पैदा करने वाले रूपको देखकर महर्षि का मन चञ्चल हो उठा, और................" ( इतनी बात कहकर बीच में ही लजित हो चुप हो जाती है ) / राजा- हाँ ठीक है, आगे का वृत्तान्त तो स्पष्ट ही है, (कि-वे ऋषि उस मेनका पर आसक्त हो गए। और इस प्रकार विश्वामित्रजी के द्वारा मेनका के गर्भ से यह शकुन्तला उत्पन्न हुई)। तो इस प्रकार तो यह अप्सरा की पुत्री है?। अनसूया-जी हाँ, और क्या / 1 'अस्त्येतदन्य' / 2 क्वचिन्न / 3 'वसन्तोदारसमये / 4 'लज्जया विरमति' /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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