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________________ 76 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [प्रथमोअनसूया-तं सहिए पहवं अवगच्छ ! उज्झिदाए सरीरसंबड्ढणादिहिं २उण तादकण्णो २वि एदाए पिता / [तं सख्याः प्रभवमवगच्छ / उज्झितायाः शरीरसंवर्द्धनादिभिः पुनस्तातकण्वोऽप्येतस्याः पिता]। राजा-'उज्झित'शब्देन जनितं नः कुतूहलं / तदामूलाच्छ्रोतुमिच्छामः / * अनसूया-सुणादु अजो, गोदमीतीरे पुरा किल तस्य राएसिणो उग्गे तवसि वत्तमाणस्स कधम्पि जादसङ्केहिं देवेहिं मेणआ णाम अच्छरा णिअमविग्घआरिणी पेसिदा। [शृणोत्वार्यः-२गौतमीतीरे पुरा किल तृस्य राजर्षेरु तपसि वर्तमानस्य कथमपि जातशङ्कर्दे बैर्मेनका नामाऽप्सरा नियमविनकारिणी प्रेषिता]। प्रभवं = जन्महेतुं / 'प्रभवो जलमूले स्याजन्महेतौ' इति मेदिनी / उज्झितायाः = परित्यक्तायाः, एतस्याः = शकुन्तलायाः, संवर्द्धनं = पालनम् / ___ उज्झितशब्देन = परित्यक्तेति कथनेन / आमूलात् = प्रथमतः, जाता शङ्का येषान्तैः = शङ्काकुलैः / [अस्मद्राज्यं ग्रहीष्यतीत्याशङ्का हि देवानाम् ] | नियमस्य = तपसः, विघ्नं करोति तच्छीला-विघ्नकारिणी / अनसूया-हमारी सखी के वे ही विश्वामित्र जी जन्मदाता पिता हैं। परन्तु इस शकुन्तला को इसकी माता ने यों ही छोड़ दिया था, अतः इसका पालनपोषण केवल महर्षि कण्वने किया है। अतश्च-इसके पालन पोषण करने से वे ( कण्व ) भी इसके पिता ( के समान ही ) हैं / राजा-'यह यों ही छोड़ दी गई थी' इस बात को सुनकर मुझे कुछ कौतूहल हो रहा है। इसलिए इस प्रसङ्ग को मैं प्रारम्भ से ही पूरा 2 सुनना चाहता हूँ। अनसूया-आर्य ! सुनिए। वे कौशिक (विश्वामित्र ) नामक राजर्षि जब (गोदावरी के तट पर ) उग्र तपस्या कर रहे थे और समाधिस्थ थे, तो उनकी 1 'तं णो पिअ सहीए' [ तमावयोः प्रियसख्याः] / 2 कचिन्न / 3 'मे कुतूहलम् / 4 आमूला'। 5 'मिच्छामि /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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