________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् सख्यौ-अज 'अणुग्गहे वि अम्भस्थणा ? / [आय्यं ! अनुग्रहेऽप्यभ्यर्थना ? ] / राजा-तत्र भगवान् कण्वः शाश्वते ब्रह्मणि वित्तते, इयश्च वः सखी तस्याऽऽत्मजा, कथमेतत् ? / अनसूया-सुणादु अजो, अस्थि ( को वि) कोसिओ त्ति गोत्तगामहेओ महापहाबो राएसी / [शृगोत्वाय्यः, अस्ति (कोऽपि ) 'कौशिक' इति गोत्रनामधेयो महाप्रभावो राजर्षिः] / राजा-स खलु भगवान् कौशिकः ! [ अस्ति / श्रूयते / सखीगतं = शकुन्तलाविषयकम् / अनुग्नहे = कृपाप्रदर्शनेऽपि / अभ्यर्थना = प्रार्थना / एवञ्च भवतः प्रश्नोऽयमस्मदनुग्रह तुल्य एवेति कामं पृच्छतु भवानिति सूचितम् / तत्रभवान् = पूज्यपादः / शाश्वते व्रह्मणि = अखण्डिते ब्रह्मचर्य / गोत्रनाम = वंशनाम : यथा-गार्यः, वात्स्य इति / कुशिकस्यापत्यं -कौशिकः / महान् प्रभावो यस्यासी = महातपाः / राजसु ऋषिः, राजर्षिः = क्षत्रियश्रेष्ठो महर्षिविश्वामित्रः / स खलु = स जगति प्रसिद्धः। भगवान् कौशिकः!, स त्वस्माभिआयते एवेत्यर्थः / दोनों सखियाँ - पूछिए, पूछिए / भला, अनुग्रह में भी कभी प्रार्थना की आवश्यकता होती है ? / अर्थात् आप यदि कुछ पृछेगे तो वह हमारे ऊपर अनुग्रह ही होगा। अतः इसमें प्रार्थना की क्या आवश्यकता है / अवश्य पूछिए / राजा-भगवान् (ज्ञानी) कण्व ऋषि तो सदा से ही नैष्ठिक ब्रह्मचारी प्रसिद्ध हैं और यह आपकी सखी उनकी पुत्री है'-ऐसा आपलोग कह भी रही हैं / तो यह कैसी बात है ? / अर्थात् नैष्ठिक ब्रह्मचारी कण्व ऋषि के यह पुत्री कैसे हुई ? / अनसूया- हे आर्य ! सुनिए / कौशिक' नाम के एक महाप्रभाव राजर्षि हैं / राजा-- क्या वे सुप्रसिद्ध भगवान् कौशिकजी ( विश्वामित्रजी)। हाँ, उनका नाम तो मैंने खूब सुना है। (मैं उनको खूब जानता हूँ)। 1 'अणुग्गहो विअ इअं अब्भत्थणा' [अनुग्रह इवेयमभ्यर्थना / / 2 स्थित इति प्रकाशः' / 3 'तदात्मजेति' / 4 क्वचिन्न / 5 'अस्ति / श्रूयते /