________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् किं णिमित्तं वा अजेण सुउमारेण तवोवणगमणपरिस्समे अप्पा उवणीदो त ? ! [हला! ममाप्यस्ति कौतूहलम् / तत् प्रक्ष्यामि तावदेनम् / (प्रकाशं ) आय॑स्य मधुराऽऽलापजनितो विशम्भो मामालापयति / 'कतरो राजर्षिवंशोऽलंक्रियते आर्यण ? / कतमो वा देशो विरहपयुत्सुकः क्रियते ? / किंनिमित्तं वाऽऽर्येण सुकुमारेण तपोवनगमनपरिश्रमे आत्मा उपनीत ?' इति / शकुन्तला-(आत्मगतम् ) हिअअ ! मा उत्तम्म, जं तुए चिन्तिदं तं अणसूआ मन्त्रेदि / [(आत्मगतं ) हृदय ! मा-उत्ताम्य, यत्त्वया चिन्तितं, तदनसूया मन्त्रयति]। आर्यस्य = भवतः, मधुरेण = प्रियेण / रमणीयेन / आलापेन = भाषणेन, जनितः = विश्रम्भः = विश्वासः, आलापयति-मां सम्भाषणं कारयति / कतरः = सोमसूर्यवंशयोर्मध्ये कतरः / बिरहेग पर्युत्सुकः = उत्कण्ठाकुलः, सुकुमारेण = कोमलगात्रेण, तपोवने यद्गमनं, तत्र यः परिश्रमस्तत्र = ईदो आयासे, आत्मा उपनीतः = शरोरं योजितम् / केन हेतुना च भवानत्रायात इति हि प्रश्नाशयः / ___ मा उत्ताम्य = मः व्याकुलीभृः / मन्त्रयति = पृच्छति / परिहारं = निगृहनं, कुतूहल हो रहा है ! अतः मैं इनसे ही पूछती हूँ। (प्रकट में-) आर्य ! आपके इस मधुर भाषण से जो विश्वास हमलोगों में उत्पन्न हो गया है, उसी से मैं आपसे यह पूछने की पृष्टता कर रही हूँ, कि-आपने किस राजर्षि वंश को अपने जन्म से अलंकृत किया है ? / और आपने कौन से देश को अपने विरह से उत्सुक ( विरहाकुल ) किया है ? / और किस लिए आपने अपने इस सुकुमार शरीर को इतनी दूर इस तपोवन में आने के कष्ट में लगाया है ? / ( अर्थात्-आप किस राजवंश के हैं ?, और कहाँ के रहनेवाले हैं ?, और इस तपोवन में आपके आने का क्या कारण है ? ) कृपया कहिए। शकुन्तला-(मन ही मन ) अरे हृदय ! मत घबड़ा / तूं क्यों उतावला हो रहा है ? / जो बात तूं जानना चाहता है, उसी बात को तो यह अनसूया स्वयं ही पूछ रही है।