________________ *rammam 508.. अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [सप्तमो शकुन्तला-( सहर्ष-) जअदु जअदु अञ्चउत्तो (-इत्यद्धोंके बाष्पसन्नकण्ठी विरमति ) / [(सहर्ष-) जयतु जयत्वार्यपुत्रः (इयोक्ते बाष्पसन्नकण्ठी विरमति)] | राजा-प्रिये / बाष्पेण प्रतिरुद्धेऽपि जयशब्दे, जितं मया / यत्ते दृष्टमसंस्कार-पाटलोष्ठपुटं मुखम् // 23 // बालः–अम्ब ! को एसो ? / / [अम्ब ! क एषः 1] / . तिमिरं तमः' इति, 'उपरागो ग्रहो राहग्रस्ते विन्दौ च, पूष्णि चे त्यमरः / ग्रहणान्ते चन्द्रमसः स्वकान्तया रोहिण्या सह सम्बन्ध इव मया सह त्वत्समागमो. ऽयमिति भाव: [ अनुप्रासः / निदर्शना / दृष्टान्तः / 'आर्या' ] // 22 // बाष्पेणेति / बाष्पेण = हर्षाश्रभिः / जयशब्दे = 'जयतु जयतु' इति शब्दे / प्रतिषिद्धेऽपि = अवरुद्धेऽपि / मया जितं = विजय एव मे जातः। यत् = यस्मात् / असंस्कारेऽपि = प्रसाधनलेपनादिवर्जनेऽपि, पाटल ओष्ठपुटो यत्र तत्-असंस्कारपाटलोष्ठपुटम् = अकृत्रिमाऽरुणप्रभोद्भासितोष्ठपुटललितं / यद्वाऽसंस्कारमलिनवौँठपुटम् / ते = तव / मुखं / दृष्टम् = मयाऽवलोकितम् / श्वेतरक्तस्तु पाटल:' इत्यमरः। अकृत्रिमाऽरुणप्रभाभासितमलिनवर्गोष्ठपुट वा त्वन्मुखं विलोक्य कृतार्थोऽस्मीति भावः / [ विरोधाऽऽभास: / काव्यलिङ्गम् | अनुप्रासः] // 23 // (चन्द्र) ग्रहण के बाद चन्द्रमा से रोहिणी के समागम की तरह हो आज मेरे से तुमारा यह समागम हो रहा है // 22 // शकुन्तला---(बड़े हर्ष के साथ) आर्यपुत्र की जय जयकार हो (इस वाक्य को आधा बोलकर ही आँसुओं से गला भर जाने से, उसकी बोली रुक जाती है)। राजा-हे प्रिये ! तुमारे जय जयकार के शब्द के आँसुओं से रुक जाने पर भी, संस्कार ( बनाव, शृङ्गार ) से शून्य, मुझाए हुए, विरहसे पाण्डुवर्ण (या गुलाबी) ओठों से युक्ततेरे इस मुख को देखकर ही मैंने विजय प्राप्त कर ली // 23 // बालक-माँ ! यह कौन है ? / .