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________________ 506 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [सप्तमोशकुन्तला—( पश्चात्तापविवर्ण राजानं दृष्ट्वा, सवितर्कम्-) ण क्खु अजउत्त इव, ता को एसो किदरक्खामङ्गलं दारअं मे गत्तसंसग्गेण दूसेदि ! / [( पश्चात्तापविवर्ण' राजानं दृष्ट्वा सवितर्कम्- ) न खल्वार्यपुत्र इव / तत्क एष कृतरक्षामङ्गलं दारकं मे गात्रसंसर्गेण दूषयति ? ] / बाल:-( मातरमुपगम्य-) अम्ब ! को एसो मं 'पुत्तके'त्ति ससिणेहं आलिङ्गदि ? / [ (मातरमुपगम्य-)अम्ब ! क एष मां 'पुत्रके ति सस्नेहमालिङ्गति ? ] / राजा-प्रिये ! क्रौर्यमपि मे त्वयि प्रयुक्तमनुकूलपरिणामं संवृत्तम / तदहमिदानीं त्वया प्रत्यभिज्ञातमात्मानमिच्छामि / पश्चात्तापेन = अनुतापेन / विवणे = किञ्चिद्विपरीतरूपम् / मलिनरूक्षवर्णम् / आर्यपुत्र इव न खलु = नाऽयम् / दुष्यन्तसदृशो नाऽयम् / कृतं रक्षैव मङ्गलं यस्य तं = कृतरक्षासंस्कारविशेषं / गात्रसंसर्गेण = आलिङ्गनेन / दूषयति = अपवित्रतां नयति / ___ त्वयि प्रयुक्तं = त्वामधिकृत्य कृतम् / क्रौर्य = शाठ्यम् / अनुकूलः परिणामो यस्य तत् = अभीष्टफलप्रदं / यथा मया न त्वं प्रत्यभिज्ञातपूर्वा, तथा त्वयाऽद्याहं न प्रत्यभिज्ञात इति उचितो दण्ड इदानी मे संवृत्त इत्यभिप्रायः / प्रत्यभिज्ञात शकुन्तला-(पश्चात्ताप से विवर्ण मलिन और उदास मुख राजा को देखकर, विचार करती हुई) यह तो आर्यपुत्र ( मेरे पति) नहीं मालूम होते हैं / तो फिर यह कौन है, जो रक्षा विधान से रक्षित मेरे पुत्र को अपनी गोद में लेकर इस प्रकार अपने शरीर के संपर्क से अपवित्र कर रहा है ? / बालक-(अपनी माता के पास जाकर ) माँ! यह कौन है, जो मुझे 'पुत्र' 'पुत्र' कहकर बड़े प्रेम से अपनी छाती से लगा रहा है / राजा-हे प्रिये ! मैंने तेरे साथ जो करता का व्यवहार किया था, उसके अनुरूप ही यह परिणाम हुआ है। अर्थात्-उस समय जैसे मैंने तुम्हे नहीं पहिचाना था, इसी प्रकार अब तुम भी मुझे नहीं पहिचान रही हो। अतः मुझे अपने किए का उचित ही दण्ड मिल गया। अतः अब तो मुझे पहिचानो। मैं ही वह दुष्यन्त हं, जिसने तुमारा उस समय प्रत्याख्यान किया था / अब मैं ही तुमसे अपने स्वीकार करने की (अपने पहिचानने की ) प्रार्थना व इच्छा करता हूँ। 1 'न खलु आर्यपुत्रोऽयम्' पा० / 2 'पश्यामि' / /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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