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________________ 502 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [सप्तमोउभे-मा क्खु, मा 'क्खु एदं / ( विलोक्य-) कथं गहिदो ज्जेव!। (-विस्मयादुरोनिहितहस्ते परस्परमवलोकयतः ) / [मा खल्विदं, मा र्खाल्वदम्..... ( विलोक्य-) कथं गृहीतमेव / ( -विस्मयादुरोनिहितहस्ते परस्परमवलोकयतः)। राजा--किमर्थं भवतीभ्यां प्रतिषिद्धोऽस्मि ? / प्रथमा--सुणादु महाभागो / एसा मआप्पहावा अवराजिदा णाम सुरमहोसही इमस्स दारअस्स जादकम्मसमए भअवदा मारीएण दिण्णा / एवं किल मादापिदरो, अप्पाणं च वजिअ अवरो भूमिपदिआं ण गेहादि। [शृणोति महाभागः / 'एषा महाप्रभावा अपराजिता नाम सुरमहौषधिरस्य दारकस्य जातकर्मसमये भगवता मारीचेन दत्ता। एतां किल मातापितरावात्मानञ्च वर्जयित्वाऽपरो भूमिपतितां न गृह्णाति ] / सङ्घर्षात् / परिभ्रष्टः = पतितः। विगलितः / आदातुं = ग्रहीतुं। मा खलु मा खलु = नहि नहि / एतत् = इदं / त्वया आदेय मिति शेषः / अर्द्धाऽवसितमिदं वाक्यं संभ्रमादेव / आलाव्य = गृहीत्वा. / उरोनिहितो हस्तो हि विस्मये स्त्रीणां भवति / माता च पिता च-मातापितरौ = पितरौ / आत्मानञ्च = स्वञ्च / सुरमहौषधिः = दिव्यौषधिः। अपरः = एतब्यतिरिक्तः / गृह्णाति = आदत्ते / सो दोनों तापसियाँ हैं ! हैं ! आप इसको मत छूओ, मत छूओ। ( देखकर- ) हैं ! इन्होंने इस जन्तर को कैसे उठा लिया ! / [ दोनों तापसियाँ आश्चर्य से छाती पर हाथ रखकर परस्पर देखती हैं ] / राजा-आप लोगों ने मुझे इस यन्त्र के उठाने से क्यों मना किया था। पहिली तापसी-हे महाभाग ! सुनिए / यह अपराजिता नाम की महान् प्रभाव रखने वाली दिव्य महौषधि है, जो इस बालक के जातकर्म ( जन्म समय के ) संस्कार के समय भगवान् मारीच जी ने इसके हाथ में रक्षार्थ बान्ध दी थी। इसको भूमि पर गिर जाने पर, या तो स्वयं बालक या इस बालक के पिता माता ही इसे उठा सकते हैं / अन्य लोग नहीं उठा सकते हैं। १'मा खल्विदमवलम्ब्य' पा० /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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