________________ 496 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [सप्तमो- तापसी--इमस्स बालअस्स असम्बद्धेवि भद्दमुहे संवादिणी आकिदि त्ति विहिदह्मि / अवि अ वामसीलो वि भविअ अवरिचिदस्स वि दे वअणेण पइदित्थो संवुत्तो!। [ अस्य बालकस्य असम्बद्धेऽपि भद्रमुखे संवादिनी आकृतिरिति विस्मिताऽस्मि / अपि च-वामशीलोऽपि भूत्वा अपरिचितस्यापि. ते वचनेन प्रकृतिस्थः संवृत्तः !] / राजा-( बालमुपलालयन्-) आर्ये ! न चेन्मुनिकुमारोऽयं, तत्कोऽस्य व्यपदेशः। . तापसी-'पोरवत्ति / ['पौरव' इति / प्रश्नः / संवादिनी = सदृशी। अप्रतिलोमः = अनुकूलः / पाठान्तरे-असम्बन्धे = सम्बन्धाऽभावेऽपि / वामशीलः = हठी / प्रकृतिस्थः-शान्त इत्यर्थः / उपलालयन् = आवर्जयन् / परामृशन् / व्यपदेशः= कुलपरम्परागताऽऽख्या / तापसी-इस बालक के साथ आप का कोई सम्बन्ध नहीं होते हुए भी, इस की और आप की आकृति ( चेहरा-मोहरा ) बिलकुल मिलती-जुलती है / इसी लिए मैं आश्चर्य चकित हो रही हूँ। और भी-यह अत्यन्त हठी होने पर भी आपके अपरिचित के कहने से ही प्रकृतिस्थ (शान्त व चुपचाप) हो गयायह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है। नहीं तो यह बालक जल्दी किसी को बात मानता ही नहीं है। राजा-( उस बालक का लाड-प्यार करता हुआ, उसे खिलाता हुआ-) हे आयें ! यदि यह ऋषिकुमार नहीं है, तो फिर इसके वंश का परिचय क्या है ? / अर्थात्-यह किस वंश का है ? / तापसी-यह 'पौरव' वंश का है। अर्थात् यह क्षत्रिय का बालक है। 1 'अस्य बालस्याऽसम्बन्धेऽपि भद्रमुखसंवादिनी आकृतिरिति विस्मिताऽस्मि / अपि च वामशीलोऽपि भूत्वाऽपरिचितस्य ते वचनेन प्रकृतिस्थः संवृत्तः' पा० /