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________________ 492 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [सप्तमोराजा-स्पृहयामि खलु दुलेलितायाऽस्मै / ( निःश्वस्य-) आलक्ष्यदन्तमुकुलाननिमित्तहासै रव्यक्तवर्णरमणीयवचःप्रवृत्तीन् / अङ्काश्रयप्रणयिनस्तनयान्वहन्तो, धन्यास्तदङ्गरजसा कलुषीभवन्ति // 17 // शावकेनैव / न तु मृन्मयूरेणेति भावः / दुर्ललिताय = धृष्टाय / अस्मै = बालकाय / स्पृहयामि / 'स्पृहेरीप्सितः' इति सम्प्रदानता। एनमालोक्य नितरां प्रसीदामि / प्रहृष्यामीति यावत् / ___ आलक्ष्येति / अनिमित्तं हासैः= निष्कारणप्रहासैः / आ-ईषत् , लक्ष्याः = दृश्याः, दन्ता मुकुलानीव-येषां तान्--आलक्ष्यदन्तमुकुलान् = ईषद्विकसितदन्तकुमलान् / अव्यक्ता वर्णा यासु ता:-अव्यक्तवर्णा:-अत एव रमणीया वचसां प्रवृत्तयो येषान्तान् / अङ्काश्रयप्रणयिनः= उत्सङ्गावस्थानलालसान् / तत्परायणान् वा। वहन्तः = धारयन्तः। तेषामङ्गानां रजसा-तदङ्गरजसा = बालवपुःपांसुना च / धन्याः = भाग्यशालिन एव सुकृतिनः / कलुषीभवन्ति = मलिनतां धारयन्ति / धन्या एव मलिनीभवन्ति / ईषद्धसतः, काकलीचटुलं लपतः, पांसुमलिनितान् बालान्-क्रोडे कुर्वन्तो धन्या एव तदङ्गमृन्मलिना भवन्तीति भावः। [अप्रस्तु. तप्रशंसा / अनुप्रासः / वसन्ततिलका वृत्तम् / ] // 17 // . राजा-इस धृष्ट अविनीत बालक को देखकर मेरा तो मन ललच रहा है! (दीर्घ श्वास लेकर-) विना कारण ही हंसने से जिनके दातों की पत्तियाँ कुछ 2 विकसित हो रही हैं, और जो अव्यक्त ( अस्पष्ट ) अक्षरों से मनोहर वाणी ( तोतली बोली) बोलते हैं, और जो गोद में बैठने के लिए उत्सुक हो रहे हैं, ऐसे अपने पुत्रों को गोद में बैठाकर, उनके अंग में लगी हुई धूलि से कोई भाग्यशाली एवं पुण्यात्मा लोग ही मलीन और धूलिधूसरित होते हैं / अर्थात् मट्टी में भरे हुए, खेलते हुए बालक पुत्र भाग्यवान् पुरुषों की हो गोद में आकर बैठते है // 17 //
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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