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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 479 अभूतलस्पर्शतया निरुद्धति स्तवाऽवतीर्णापि न लक्ष्यते रथः / // 10 // ___मातलि:-एतावानेव शर्तमन्योरायुष्मतश्च रथस्य विशेषः / शब्दो याभिस्ताः-उपोढशब्दाः = कृतध्वनयः / न = नैव / भूतलस्पर्शाऽभावाचक्रप्रान्तभागसङ्घर्षजो रथस्य घर्घरस्वनो नैव श्रूयते इति भावः / __ अभूतलस्पर्शतयैव-प्रवर्त्तमानम् = उद्गच्छत् / रजः = धूलिः / न च दृश्यते = न विलोक्यते / अभूतलस्पर्शतयैव-निर्गता उद्धतिर्यस्यासौ निरुद्धतिः = समविषमप्रदेशावस्थानादिजन्यौद्धत्यविकल: / ( उद्धतिः = 'धक्का' ) / तव रथः-अवतीर्णोऽपि = हेमकूटभूतलमवतीर्णोऽपि / न लक्ष्यते =न विज्ञायते / [विशेषोक्तिः / काव्यलिङ्गम् / अनुप्रासः / विरोधाभासः / 'वंशस्थं वृत्तम्' ] // 10 // शतमन्योः= इन्द्रस्य / 'शतमन्युर्दिवस्पति रित्यमरः / आयुष्मतः = भवतश्च / को छता है, 'पुट्टियाँ' ) तो बिलकुछ ही शब्द (आवाज) नहीं करती हैं। और भूमि से धूलि भी उड़ती नहीं दीखती है। और यह रथ भूमि से ऊँचा ही रहता है, जमीन को छूता भी नहीं है, अतः इसमें धक्के भी नहीं लगते हैं। इस लिए यह तुमारा रथ भूमि पर उतर आने पर भी, भूमि पर उतरा हुआ सा मालूम ही नहीं होता है ! / . भावार्थ-जितने भी रथ हैं, वे सभी जब भूमि पर चलते हैं, तो उनके चलने से पहियों की खड़खड़ाहट होती है, धूलि उड़ती है, ऊँची-नीची जगहों में धक्के भी लगते हैं, परन्तु तुमारा यह दिव्य रथ तो इन सब बातों से रहित है, अतः भूमि पर उतरने पर भी, यह भूमि में उतरा हुआ सा नहीं मालूम होता है। [ देवताओं के पैर, और उनके रथों के पहिए, भूमि से स्पर्श नहीं करते हैं, किन्तु वे सदा भूमि से उचे ही उठे रहते हैं ] // 10 // -मातलि-आपके रथमें और भगवान् इन्द्र के रथमें यही तो विशेषता है। 1 'शतक्रतोः' पा०।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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