________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् [भोः ! कथं न भेष्यामि, एष मां कोऽपि प्रत्यामोड्य शिरोधरामिक्षुमिव भग्नास्थिं कत्तुमिच्छति / राजा-( सदृष्टिक्षेपम्-) धनुस्तावत् / ___ (प्रविश्य शाहिस्ता प्रतीहारी-) प्रतीहारी-जअदु जनदु भट्टा / एदं ससरं सरासणं, हत्थावारओ / [जयतु जयतु भर्ता / एतत्सशरं शरासनं, 'हस्तावारकश्च / __ (राजा-सशरं धनुरादत्ते)। (नेपथ्ये--) एष त्वामभिनवकण्ठशोणितार्थी, शार्दूलः पशुमिव हन्मि चेष्टमानम् / परिचलन् / पुनस्तदेव पठित्वा = 'भो वयस्य ! अविहाऽविहे'त्युक्त्वा / पाठान्तरे-प्रत्यवनता शिरोधरा यस्य तं-प्रत्यवनतशिरोधरं = नाचेर्योवम् / तिर्यग्ग्रीवं वा / माम् इक्षुभिव-त्रिभङ्ग = त्रिखण्डम् / पाठान्तरे-प्रत्यामोड्य = पीडयित्वा / भमास्थि = भग्न कीकसं। शिरोधरा = ग्रीवा / सदृष्टिक्षेपं = विलोक्य / धनुस्तावत् / 'आनयेति शेषः / शरैः सहितं-सशरं = बाणैः सहितं / शरासनं = धनुः / हस्तावारकं = ज्याघातवारणं चर्मफलकं यद्धस्तयोराबध्यते / एष इति / अभिनवं कण्ठस्य शोणितमर्थयते इति, तदर्थो यस्येति वा-अभिपकड़ कर, मुझे ईख की तरह निचोड़ रहा है, और मेरी हडी 2 चूर कर रहा है। राजा-(इधर-उधर देखकर) मेरा धनुष कहाँ है ? / जल्दी धनुष बाण लाओ। प्रतीहारी-महाराज की जय जयकार हो। यह धनुष बाण है, और यह हाथ में बाँधने का पट्टा है। [राजा-धनुष और बाण उठाता है / [ नेपथ्य में-1 देख, तेरे गले से निकले हुए, ताजा गर्मागर्म खून के पीने की इच्छा से, 1 'प्रत्यवनतशिरोधरमिक्षुमिव त्रिभङ्गं करोति' पा० / 2 'धनुर्धनुः' पा० / 3 क्वचिन्न / 4 'भतः ! एतद्धस्तावापसहितं शरासन'। . 5 'हस्ताऽऽवाप' इति पा० / 6 'वेष्टमानम्' पा० /