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________________ 454 अभिज्ञानशाकुन्तलम् षष्ठो 'प्रजासु कः केन पथा प्रयाती'त्यशेषतः कस्य पुनः प्रभुत्वम् 1 // 32 // (नेपथ्ये-) भो वअस्स ! अबिहा ! अबिहा। [ भो वयस्य ! अभिधाव ! अभिधाव ] / . राजा--(आकर्य, गतिभेदं रूपयन्-) सखे ! न भेतव्यं, भेतव्यम् / (नेपश्ये पुनस्तदेव पठित्वा-) भो ! कधं न भाइस्सं ? / एसो मं कोवि पञ्चाडिअसिरोधरं इक्खं विभ भग्गत्थिं करिद् इच्छदि। . ज्ञातुं न शक्यं, किं पुनः-प्रजासु = जनेषु / कः केन पथा = कः केन मार्गेण | धर्मेण वा, तद्विपरीतेन वा। प्रयाति = व्यवहरति / इति = एतत् / अशेषतः = कास्न्थेन ज्ञातुं / कस्य पुनः प्रभुत्वं = कस्य सामर्थ्यम् ! / न कस्यापीत्यर्थः / स्वस्यैव तावत्स्खलितं न ज्ञायते, किं पुनः सकलस्य लोकस्येति-कस्यापि, केनापि पापेनैव कर्मणा मद्नेहेऽपि सत्त्वबाधेयमिति भावः / [अनुप्रासः / उपजातिः ] // 32 // अविहेति-खेदे देशी / 'अविधे' ति पाठे अविधेत्याक्रोशे / 'अभिधावे ति पाठे-त्वरितमागच्छेत्यर्थः। पाठान्तरे-गतिभेदेन = क्रोधोद्धतया गत्या। परिक्रामन् = जानना जब मनुष्य के लिए कठिन है, तब प्रजा में कौन क्या बुरा काम करता है ?, कौन किस रास्ते से चलता है, कौन पाप करता है, कौन पुण्य करता हैइन सब बातों को कौन पूरी 2 तरह जान सकता है ? / इसलिए न मालूम किसके पाप से मेरे महलों में भी ऐसे उपद्रव होने लगे हैं ? // 32 // ..[नेपथ्य मेंहाय ! हाय ! मित्र ! दौड़ो, दौड़ो, मुझे बचाओ, मुझे बचाओ ! / राजा-(सुनकर इधर उधर दौड़ता हुआ-) हे मित्र ! डरो मत, डरो मत ! [नेपथ्य में-1 हाय ! मैं कैसे नहीं डरूं ? / न मालूम यह कौन है, जो मेरे गले को जोर से 1 'अभिधावेहि भो ! अभिधावेहि / ' इति पा० / भो वअस्स अविहा अबिहा / [ भो वयस्स ! अविहा अविहा] इति च पा० / / 2 'गतिभेदेन परिक्रामन्' पा०।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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