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________________ ऽङ्कः] . अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 437 .. (-इति द्रुलपदं निष्क्रान्तः ) / सानुमती-अम्मो ! अण्णसंकन्तहिअओ वि पढमसम्भावणं रक्खदि / थिरसोहिदो दाव एसो। [अम्मो! अन्यसंक्रान्तहृदयोऽपि प्रथमसम्भावनं रक्षति / स्थिरसौहृदस्तावदेषः]। (प्रविश्य पत्रहस्ता प्रतीहारी-) प्रतीहारी-जेदु जेदु देवो। [जयतु जयतु देवः] / पाठे-त्वमाह्वयेत्यर्थः / इतो विमुच्य-मेघप्रतिच्छन्दके भवता आगन्तव्यं, तत्रैवचाऽहमन्वेष्टव्य इत्याशयः। पारावतम् = कपोतम् / उज्झित्वा = विहाय / द्रुतानि पदानि यस्मिन् कर्मणि तद्यथा स्यात्तथा-द्रुतपदं = त्वरितपदन्यासम् / ___ अन्यस्यां सक्रान्तं हृदयं यस्यासौ तथा = शकुन्तलासक्तचित्तोऽपि / प्रथमसम्भावनं = पूर्वानुरागं / अन्यासां देवीनामपि पूर्वानुरागम् / स्थिरः स्नेहो यस्यासौ लीजिएगा। अर्थात्-रानी से आपका भी जल्दी ही पीछा छूटना तो बहुत ही कठिन है, पर यदि उससे किसी तरह आप बच निकलें, तो मुझे ऊँचे बुर्जवाले महलसे बुला लेना / और इस चित्रपट को तो मैं ऐसी जगह छिपा दूंगा, जहाँ कबूतरों के सिवाय दूसरा देख ही नहीं सकेगा। अर्थात्-इतनी ऊँची जगह (बुर्ज में ) इसे छिपाऊँगा, जहाँ केवल कबूतर ही जा सकते हैं, मनुष्य नहीं। सानुमती-वाह ! वाह ! यह रांजा तो अन्य कान्ता ( शकुन्तला ) में आसक्त हृदय होकर भी अपने पहिले प्रेम की (पुरानी रानियों के प्रेम की, उनके मान और भावना की / रक्षा ही कर रहा है, और उन्हें भी प्रसन्न रखना चाहता है। और इसी लिए इसने शकन्तला के इस चित्रपट को छिपा दिया है, जिससे पुरानी रानी वसुमती उसे देखकर अप्रसन्न न हो जाए। ठीक है, यह राजा स्थिरसौहृद = दृढप्रेमवाला है। दूसरी स्त्री से प्रेम करके भी, पहिले की प्रेमपात्र रानियों को भूल नहीं गया है, किन्तु उनका भी पहिले की ही तरह मानसम्मान रखता है / अतः यह राजा धन्य है। [पत्र हाथ में लिए हुए प्रतीहारी का प्रवेश.] / प्रतीहारी-महाराज की जय, जयकार हो /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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