________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् दास्या:पुत्रः कुसुमरसपाटच्चरो दुष्टमधुकस्तत्रभवत्या वदनकमलमभिलषति !] राजा-ननु वायंतामेष धृष्टः / विषकः--भो ! तुम जेव अविणीदाणं सासिदा इमस्स वारणे पहवसि। [भोः ! त्वमेवाऽविनीतानां शासिताऽस्य वारणे प्रभवसि ] / राजा--युज्यते / अयि भोः कुसुमलताप्रियाऽतिथे ! किमत्र परिपतनखेदमनुभवसि ? / 'दास्याःपुत्र' इत्याक्रोशे / 'षष्ठया आक्रोशे' इतिषष्ठया अलुक / नीच इत्यर्थः / कुसुमरसानां पाटच्चरः = पुष्परसचौरः। दुष्टमधुकरः = नीचो, धृष्टो भ्रमरः / वदनमेव कमलं = मुखपङ्कजम् / अभिलषति = इच्छत्याघ्रातुम् / 'ननु' इत्यामन्त्रणेनुनयेऽनुज्ञायां वा / 'प्रश्नावधारणाऽनुज्ञाऽनुनयाऽऽमन्त्रणे ननु'-इत्यमरः / अविनीतानां = दुष्टानां, धृष्टानां च / शासिता= शासकः / प्रभवसि = समर्थोऽसि / युज्यते = युक्तियुक्तमुक्तं भवता / मयैव वारणीयोऽयं भ्रमर इत्याशयः। कुसुमयुक्तानां लतानां प्रियोऽतिथिस्तत्सम्बुद्धौ-हे कुसुमलताप्रियाऽतिथे = हे कुसुमलताप्रणयिन् ! / हे प्रौढकामिनीतुल्यकुसुमितप्रफुल्ललताप्रियेत्युक्त्या बालायामस्यां त्वं कस्मादनुरक्तोऽसीति,-अत्र सम्बोधनपदे निगूढो भावः / अत्र% वदनकमले / परिपतनात्खेदम् = अवस्थानकष्टम् / आक्रमणक्लेशम् / किम् अनुभहे मित्र ! देखो दासी का (रांडका ) पुत्र फूलों के रस का चोर, यह दुष्ट भ्रमर (भौंरा) श्रीमती शकुन्तला के मुख कमल के रस का पान करना चाहता है ! / राजा-तो तुम ही इस ढीठ और दुष्ट भ्रमर को रोको। इस को जल्दी से यहाँ से हटाओ। विदूषक-हे मित्र ! दुष्टों और अविनीतों ( कहा न मानने वाले, मर्यादा का उल्लङ्घन करने वाले, दुष्टों व बदमाशों) के शासन करने वाले (-दण्ड देनेवाले ) तो आप ही हो / अतः इसको आप ही हटाइए / राजा-ठीक बात है। (भ्रमर से-) हे फूलों से लदी हुई लताओं के प्रिय पाहुने ! भ्रमर ! इस शकुन्तला के मुखकमल पर बैठने के खेद को (परिश्रम ) तुम क्यों स्वीकार कर रहे हो ? / तुम इस प्रकार क्यों वृथा परिश्रम कर रहे हो ? / देखो