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________________ 422 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [षष्ठो [ चेटी प्रति-] चतुरिके ! अर्द्धलिखितमेतद्विनोदस्थानमस्माभिः / तद्गच्छ / वर्तिकास्तावदानय / चेटी-अज ! माहव्व ! अवलम्बस्स चित्तफलों, जाव आमच्छामि / [ आर्ग माधव्य ! अवलम्बस्व चित्रफलक, यावदागच्छामि ] / 'स्विन्ना१लिविनिवेशो रेखाप्रान्तेषु दृश्यते मलिनः। अश्रु च कपोलपतितं दृश्यमिदं वर्तिकोच्छासात्' / / -इति पाठान्तरे,-मलिनः स्विन्नाङ्गुलिविनिवेशः, रेखाप्रान्तेषु-चित्रप्रान्तेषु, दृश्यते = भाति / वर्तिका = चित्रपटे लेपविशेषः (वार्निश) / उच्छासः = उच्छू. नता / ('फूलना)। जलपतनान्मषी-पत्रादीनामुच्छूनता प्रसिद्धैवेत्याशयो बोध्यः / [अनुमानाऽनुप्रासौ] // 19 // एतद्विनोदस्थानं = मन्मनोमोदावहं चित्रम् / अर्द्धलिखितम् = अपूर्णमेवाऽद्ययावन्न समापितम् / वर्तिकाः = तूलिकाः, चित्रलेपद्रव्याणि च / (पूची-रंग)। करने से मेरे काम विकार जन्य प्रस्वेद से ( पसीने से ) गीली इन मेरी अंगुलियों के लगने से इस चित्र के प्रान्त (किनारे) के 'भागों की रेखाएँ मलिन हो रही हैं / और मेरे कपोलों से ढलक कर गिरे हुए अश्र भी, रंग के फूल आने से स्पष्ट ही प्रतीत हो रहे हैं। अर्थात् शकुन्तला के चित्र के लिखने के समय सात्विकभावसूचक प्रस्वेद निकल आने से मेरी अङ्गुलियाँ गीली हो गई थीं, जिससे चित्र के प्रान्त भाग में जहाँ 2 मेरी अङ्गुलियाँ लगी हैं, वहाँ 2 चित्र की रेखाएँ मलिन हो गई हैं, और मेरे आँसू भी जहाँ 2 गिरे हैं, वहाँ 2 का रंग भी, जल लगने से फूल गया है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि-यही उस शकुन्तला का चित्र है, जिसमें मेरा अनुराग है // 19 // [चेटी से-] अरी चतुरिके ! मेरे मन बहलाने का साधन-यह चित्रपट-अभी आधा ही लिखा गया है, अत: तूं जा, और रंग की प्याली और कूची लेकर आ,जिससे मैं इस चित्रपट को पूरा करूँ। जब तक मैं लौटकर आती हूँ। [माधव्य = मधुपुरी-मथुरानिवासी चौवेजी] /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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