________________ 420 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [षष्ठोराजा-त्वं तावत्कतमां तर्कयसि / / विपक:-( निर्वयं-) तक्केमि जा एसा सिढिलकेसबन्धणुज्वन्तकुसुमेण केसहत्थेण. बद्धस्सेअविन्दुणा वअणेण, विसेसदो णमिदंसआहिं बाहुलदाहि, उच्चलिदणीबिणा वसणेण अ इसीप्परिसन्ता विअ अहिसे असिणिद्धदरपल्लवस्स बालचूअस्वखस्स पास्से आलिहिदा, एसा तत्यमोदी सउन्तला / इदराओ सहीओ ति। [(निर्व-) तर्कयामि-यैषा शिथिलकेशबन्धनोद्वान्तकुसुमेन केशहस्तेने, बद्धस्वेदबिन्दुना वदनेन, विशेषतो नमिताऽसकाभ्यां बाहुलताभ्यामुचालतनीविनों वसनेन च,-ईषत्परिश्रान्तेव-अभिषेकस्निग्धतरमोहजडः / मूर्खः ) / तर्कयसि = विचारयसि / निर्वर्ण्य = नितरां दृष्ट्वा / _ शिथिलेन केशबन्धनेनोद्वान्तानि कुसुमानि यस्मात्-तेन = प्रश्लथकेशकलापबन्धननिर्गलितपुष्पेण / केशहस्तेन = केशपाशेन-उपलक्षिता / बद्धाः स्वेदस्य बिन्दवो यत्र, तेन=विपुलधर्मजलाञ्चितेन / मुखेन = वदनेन-उपलक्षिता / विशेषतः= विशेषेण / नामितांऽसकाभ्याम् = अवनतस्कन्धप्रदेशाभ्यां / पाठान्तरेनामिता शाखा याभ्यां ताभ्यां नामितशाखाभ्याम् = अवनामिताम्रशाखाभ्यां / बाहुलताभ्यां = भुजलताभ्याम्-उपलक्षिता / उच्चलितनीविना = स्रस्तनीविबन्धेन / पाठान्तरे-उच्सितनीविना = शिथिलाधोवस्त्रग्रन्थिना / वसन्न = वस्त्रेणउपलक्षिता / ईषत्परिश्रान्तेव = पादपेषु जलसेचनादीषत्परिश्रान्तेव / अभिषेकेण राजा-अच्छा, तुमही बताओ-तुम इनमें से किसको शकुन्तला समझ रहे हो। विदूषक-(चित्र को अच्छी तरह देखकर ) मैं तो यही समझता हूँ किइस चित्र में जिसके ढीले-ढाले केश बन्धन ( जूड़े ) से फूल निकल रहे हैं, (गिर रहे हैं, या उभड़ रहे हैं ), और जिसके मुख पर बहुत से स्वेद (पसीने) के बिन्दु झलक रहे हैं, और जो झुके हुए कन्धों वाली भुजलताओं से युक्त है, तथा अधखुली हुई ( ढीली-ढाली ) नीवि (धोती बाँधने की गाँठ ) वाली साड़ी बान्धे हैं और जो कुछ श्रान्त और क्लान्त सी मालूम हो रही है, और नो जल देने से हरे से भरे, लहलहाते हुए इस बाल चूतवृक्ष (आम के छोटे 1' उच्छसिद' (उच्छृसित) 2 'बहुस्वेद'। 3 'नामित शाखाभ्यामिति, 'अपमृताभ्या मिति च पाठान्तरम् / 4 'उसितनीविना' पा० /