________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 413 सानुमती-सअं ज्जेव पडिवण्णो जं अमि वत्तुकामा / [ स्वयमेव प्रतिपन्नो यदस्मि वक्तुकामा ] / विदषकः-भो ! सव्वधा अहं बुभुक्खाए मारिदब्वो ? / [ भोः ! सर्वथाऽहं बुभुक्षया मारयितव्यः ? / राजा-( अनादृय-) प्रिये ! अकोरणपरित्यागादनुशयदग्धहृदयस्तावदनुकम्प्यतामयं जनः पुनदर्शनेन / अचेतनस्याऽङ्गुलीयकस्य को दोषः, ममैवायमपराध इत्याशयः / [ विभावना विशेषोक्ति-समासोक्त्य-र्थान्तरन्यासाः / 'वंशस्थं वृत्तम् // 14 // प्रतिपन्नः = स्वीकृतवान् / यत् = 'तवैव दोष' इति / सर्वथा = सत्यमेव / मारयितव्य इति। सखे ! बुभुक्षितोऽहं, भोजनवेला जाता, तदुत्तिष्ठेत्याशयः। अनादृत्य = अश्रुत्वैवाह / अकारणपरित्यागात् = तव निष्कारणपरित्यागात् / अनुशयदग्धहृदयः = पश्चात्तापखिन्नमानसोऽहम् / पाठान्तरे-अकारणमेव त्वत्परित्यागेन दग्धं हृदयं यस्यासौ-अकारणत्यागदग्धहृदयः = वृथात्वत्परित्यागदुःखितमानसोअंगठी आदि ) यदि गुणों को न समझे, तो कथंचित् ठीक भी है, परन्तु चेतन होकर (ज्ञानयुक्त) भी मैंने अपनी ऐसी गुणवती प्रिया को क्यों त्याग दिया? // 14 // सानुमती-मैं जो कहना चाहती थी, उसे इस राजा ने स्वयं ही स्वीकार कर लिया / अर्थात्-समझदार होकर भी राजा ने अपनी प्रिया को छोड़कर बहुत ही अन्याय किया है-इस बात को यह स्वयं ही स्वीकार कर रहा है। विदूषक-हे मित्र ! क्या मुझको तुम भूख से सचमुच ही मार डालोगे ? / अर्थात्-मुझे तो अब भूख लगी है, अतः चलो, भोजन करें / इस विरहगाथा को थोड़ी देर तो छोड़ो। राजा-( उसकी बात का अनादर कर-उसकी बात को अनसुनी कर ) हे प्रिये ! अकारण ही तुम्हारा त्याग करने से, अब पश्चात्ताप से मेरा हृदय जल रहा है, अतः अब तो मुझे अपना दर्शन पुनः देकर तुम कृतार्थ करो। पुनः शीघ्रही अपने दर्शन देने की मेरे पर दया करो। 1 'खादयितव्यः' इति पाठे बुभुक्षा मामतिमात्रं बाधते इत्यर्थः / 2 'अकारणपरित्यागदग्धहृदयः' पा० /