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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 403 पुनदृष्टिं बाष्पप्रकर कलुषामर्पितवती मयि करे यत्तत्सविषमिव शल्यं दहति माम् // 10 // सानुमती-अम्महे ! ईदिसो परवसदा इमस्स मम्पि सन्दावेदि / [अहो ! ईदृशी परवशताऽस्य मामपि सन्तापयति / विपकः-भो! अस्थि मे तक्को-केन उण तत्थभोदी आआससञ्चारिणा णादे त्ति ? / .. [भोः ! अस्ति मे तर्क:-'केन पुनस्तत्रभवती आकाशसञ्चारिणा नीते'ति ?] / 'व्यपदेशमाविलयितुम्' इत्यादिना प्रत्याख्याता सती। स्वजनम् = स्वबान्धववर्ग शाङ्गग्वगौतम्यादिलक्षणम् / अनुगन्तम् = अनुसत्तुम् / व्यवसिता = प्रवृत्ता / गुरुसमे = गुरुतुल्ये, गुरोःशिष्ये = शार्झरवे / 'तिष्ठे'त्यंच्चैर्वदति सति-स्थिता = प्रतिहतगमना भूत्या स्थिता / पुनः-मयि करे = दुष्यन्ते / बामाकरैः कलुषां = बाष्पभराविलां / 'असर' इति पाठेऽपि-प्रसरः = व्याप्तिः। प्रवृद्धिः। आधिक्यम् / दृष्टि = लोचनं / यत्-अर्पितवती = यत् पातितवती / तत् = तदेव तस्याः सकरुणवीक्षणं / सविधं-विषदिग्ध-शल्यमिव = बाण इव / 'शल्यं शक्तो, शरे' इति विश्वः / मां दहति = मां सम्प्रति सन्तापयति / मयाऽस्वीकृतायाः, शाङ्गग्वासितायाश्च तस्याः कातरां तां दृष्टिं स्मृत्वा नितरां खलु व्यथते मे मन इत्याशयः। [ उपमा / शिखरिणो वृत्तम् ] // 10 // अस्य = राज्ञः / परवशता = कातरता / तर्कः = विचारः। तत्रभवती = शकुन्तला अपने स्वजन ऋषि कुमारों के पीछे 2 जाने लगी। जब गुरुतुल्य, मान्य, गुरु ( कण्व ) के शिष्य शारिव ने उसे जोर से डपट कर, 'कहाँ आती है, यही रह' ऐसा कहा, तब वह भय से ठिठक कर वहीं मेरे पास ही खड़ी रह गई, और क्रूर हृदय मेरे ऊपर उसने आँसुओं से डबडबाई हुई अपनी करुण दृष्टि डाली- वह दृश्य मुझे हृदय में लगे हुए जहर से बुझे हुए बाण के शल्य ( अग्रभाग) की तरह अब जला रहा है ! // 10 // सानुमती-आह ! इस राजा की इस प्रकार यह कातरता और करुणाजनक दशा तो मुझे भी सन्ताप पहुँचा रही है। पाठान्तर में-इसके सन्ताप से मुझे बड़ा आनन्द आ रहा है / यह मेरो स्वार्थपरायणता ही है / विदूषक-हे मित्र ! मुझे यह विचार व शङ्का हो रही है, कि - श्रीमती 1 'बाष्पप्रसर' / 2 'ईदृशी स्वकार्यपरता' / अस्य सन्तापेन अहं रमे' पा० /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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