________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 377 द्वितीया–परहुदिए ! किं एदं एआइणी मन्तेसि ? / [परभृतिके ! किमेतदेकाकिनी मन्त्रयसे ?] / प्रथमा-महुअरिए ! चूअकलिअं पेक्खिअ उम्मत्तिा क्खु परहुदिआ होदि। [ मधुकरिके ! चूतकलिका प्रेक्ष्य उन्मत्ता खलु परभृतिका भवति / द्वितीया-(सहर्ष त्वरयोपगम्य-) कधं उवस्थिदो महुमासो ! / [कथमुपस्थितो मधुमासः !] / प्रथमा--महुअरिए ! तवावि एसो कालो मदविन्भमुग्गीदाणं | परभृति केति / प्रथमचेटीनामधेयमिदम् / एकाकिनी = स्वयमेव / किमेतन्मन्त्रयसे = किमिदं त्वमालपसि ? / मधुकरिकेति / द्वितीयस्याश्चेटया नामधेयमिदम् / चूतस्य = आम्रस्य / कलिकां - कोरकं / परभृता एव-परभृतिका = कोकिला / चेटी च / वसन्ते कोकिला चूताङ्कुरं दृष्ट्वा यथा हृष्यति, तथा-अहमपि परभृति का नाम चेटी नामसाम्यात्कोकिलेव-आम्र दृष्ट्वा प्रहृष्यामि / उन्मत्ता = उन्मत्तेव हर्षतरला / कथं = किम् ? / कथं = कथं सहसैवेति वार्थः। मधु करिका दूसरी चेटी-भी परिभृतिके ! तूं अकेली ही अकेली क्या बड़-बड़ा रही है ? / ( क्या बातें कर रही है ? ) / ___पहिली दासी-हे मधुकरिके ! चूतकलिका (आम की कली, या आम की मञ्जरी ) को देखकर परभृतिका उन्मत्त हो ही जाती है। (परिभृतिका = कोयल / और पहिली चेटी का भी यही नाम है)। अर्थात्-मैं आमकी कली को देखकर, कोयल की तरह मस्त होकर, स्वयं ही चहचहा ( बोल ) रहो हूँ। दूसरी चेटी-( सहर्ष, जल्दी से पास में जाकर के ) हैं ! यह क्या ? / मधुमास = वसन्त ऋतु का महीना-(चैत्रमास ) क्या आ गया ? / अथवावाह ! अब तो मधुमास आ ही गया ! / पहिली चेटी-हे मधुकरिके ! = हेभ्रमरिके ! तेरे मदभरे व उमङ्गभरे गीतों