________________ [अथ षष्ठोऽङ्कः / (ततः प्रविशत्याकाशयानेन 'सानुमती ) / सानुमती-णिवत्तिदं मए पजाअणिवत्तणिजं अच्छरात्तित्थसन्दिहूँ / ता जाव साहुजणस्स अहिसेअकालो भवे, दाव सम्पदं इमस्स राएसिणो वुत्तन्तं पञ्चक्खीकरिस्सं / णं मेनासंबन्धेण सरीरभूता दाणि मे सउन्तला / तए अ दुहिदुणिमित्तं सन्दिपूज्वमि / (समन्तादवलोक्य-) किण्णु क्खु उवस्थिदुच्छवेवि दिअहे णिरुच्छवारम्भ विअ एवं रामउलं दीसदि ? / अस्थि मे बिहवो सर्व पणिधाणेण जाणिदुं / किन्तु सहीए मए आदरो माणइदव्यो। भोदु / इमाणं ज्जेव उजाणबालआणं पास्सपरिवत्तिणी भविअ तिरकरणीए विज्जाए पच्छण्णा उबलहिहं। (.-इति नाट्येनाऽवतीय स्थिता)। [निवर्तितं मया पर्यायनिवर्तनीयमप्सरस्तीर्थसंदिष्टम् / तद्याव आकाशयानेन = विमानेन / सानुमतीति, मिश्रकेशीति वा-अप्सरोविशेषनामधेयम् / निर्वतितं = सम्पादितं / पर्यायेण निर्वर्तनीयं-पर्यायनिर्वर्त्तनीयम् = क्रमशः सम्पादनीयं / वारक्रमेणानुष्ठेयम् / अप्सरस्तीर्थे सांनिध्यम् = [आकाशयान (वायुयान) से सानुमती नामक अप्सरा का प्रवेश]। सानुमती-पारी-पारी से प्रत्येक अप्सरा के लिए कर्त्तव्यभूत अप्सरातीर्थ में सान्निध्य = अप्सरा तीर्थ में उपस्थिति-रूपी अपने कार्य को तो मैंने कर ही लिया है / अब उससे मैं खाली हूँ। अब तो जब तक धर्मात्माओं ( साधुसन्त, सद्गृहस्थ आदि ) का स्नान का पुनः समय हो, तब तक इस राजर्षि दुष्यन्त के हाल-चाल को ही अपनी आँखों से देखूगी। क्योंकि-मेनका 1 कैश्चिदित एव षष्ठाङ्कारम्भो मन्यते। 3 'संनिद्ध' [ सांनिध्यं / 2 मिश्रकेशीति कचित्पाठः / 4 'सांनिध्यम्।