________________ ऽङ्कः] 24 अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 369 जालुक:--एशे क्खु रण्णा तधा अणुग्गहीदे जधा शुलादो ओदालिम हत्थिक्वन्धे शमालोविदे। [एय खलु राज्ञा तथाऽनुगृहीतो,-यथा शूलादवताय॑ हस्तिस्कन्धे समारोपितः] / सूचक:--आवुत्ते ! पालितोशिएण जाणामि–'महालिहलदणेण अंगुलीअएण इशामिणो बहुमदेण होदव्वं' / [आवुत्त ! पारितोषिकेण जानामि-'महाहरत्नेनाऽङ्गुलीयकेन स्वामिनो बहुमतेन भवितव्यम्']। नागरक:--ण तस्सि भट्टिणो महालिहलदणं त्ति कदुअ परिदोशो / एत्ति उण तक्केमि-।। [न तस्मिन् भत्तुमहाहरत्नमिति कृत्वा परितोषः। एतत् पुनस्तकयाभि-']। हस्तिस्कन्ध इति / शूलादवतार्य = शूलाख्यान्मारणसाधनाल्लौहदण्डादवरोप्य / हस्तिस्कन्धे = गजस्कन्धे / 'महति संमानपदे / शूलेन वध्यो राजसंमितं सत्कार प्रापित इति यावत् / पारितोषिकेण = धीवरस्य सत्कारेण / महार्ह रत्नं यत्र तेन = बहुमूल्यमणिखचितेन / अत एव . राज्ञो-बहुमतेन = अतिप्रियेण / तस्मिन् = अङ्गुलीयके / महार्ह रत्नं यत्र तत्-महाहरत्नम् = अनघरत्नघटितम् / इति कृत्वा = इति हेतोः। जालुक-इसके ऊपर तो महाराज ने ऐसी कृपा दिखाई है, मानों-इसे शूली पर से ( फाँसी के तख्ते पर से) उतार कर हाथी के हौदे के ऊपर ही बैठा दिया है। अर्थात् -कहाँ तो इसको चोरी के अपराध में शूली (शूली से वध) होने वाली थी, और कहाँ उलटा इसे रत्नजड़ित बहुमूल्य कडा इनाम मिल सूचक-सार ! इसको महाराज ने यह जो इनाम दिया है, इससे मैं समझता हूँ, कि-बहुमूल्य रत्न से जड़ी हुई अंगूठी महाराज को बहुत ही प्यारी है। मांगरक (कोतवाल)-'उस अंगूठी में बहुमूल्य रत्न जड़े हैं, इसी लिए वह अंगठी महाराज को ज्यादा प्यारी है' यह बात नहीं है / पर मैं तो ऐसा समझता