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________________ 370 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [षष्ठो उभौ-किं उण / [किं पुनः ?] / नागरकः–'तस्स दसणेण भष्टिणा कोवि अहिमदो जनो सुमरिदोत्ति / जदो मुहूत्तरं पइदिगम्भीरो वि पज्जुम्सुअमणा आसी। ['तस्य दर्शनेन भर्चा कोऽप्यभिमतो जनः स्मृत' इति / यतो मुहूर्त प्रकृतिगम्भीरोऽपि पर्युत्सुकमना आसीत् / सूचकः--दोसिदे, शोइदे अ दाणिं भट्टा आवृत्तेण / [तोषितः, शोचितश्चेदानीं भर्ता आवुत्तेन] / जालुकः--णं भणेमि-'इमश्श मच्छशत्तणो किदे'। (-इति धीवरमसूयया पश्यति ) / परितोषः = सन्तोषः / स्नेहः। तर्कयामि = सम्भावयामि / तस्य = अङ्गुलीयकस्य / अभिमतः = प्रणयी / इति = इत्थं / तर्कयामीति पूर्वेण सम्बन्धः / यतः= अत एवाऽयं मम तर्को, यदयं राजा प्रकृत्या गम्भीरोऽपि = गम्भीर प्रकृतिरपि / मुहूर्त = क्षणमात्र / पर्युत्सुकं मनो यस्यासौ-पर्युत्सुकमनाः = उत्कण्ठितचेताः। चेतसो. स्कण्ठितेन क्षणं स्मरन्निव प्रणयपेशलं कञ्चन जनं राजा खिन्नोऽभूदिति भावः / तोषित:= अङ्गुलीयकप्रदानात् / शोचितः= उत्कण्ठाऽऽकुलीकृतः / प्रियजनस्मारकतयाऽङ्गुलीयकस्य शोकप्रदत्वम् / दोनों सिपाही-वह क्या ? / अर्थात् आप क्या समझते हैं ? / नागरक-उस अंगूठी को देखकर महाराज को किसी भूले हुए अपने प्यारे बन्धु (शकुन्तला ) का स्मरण हो गया है। क्योंकि उस अंगठी को देखते ही, महाराज स्वभाव से ही गंभीर प्रकृति वाले होने पर भी, घड़ी भर के लिए अत्यन्त उत्कण्ठित एवं व्याकुल और उत्सुकचित्त हो गये थे / सूचक-तब तो आपने वह अंगठी दिखाकर महाराज को सन्तोष देने के साथ ही साथ शोक में भी डाल दिया। जालुक-यों कहो, कि-इस मछली मारनेवाले धीवर के लाभ के लिए 1 'माच्छिअभत्तुणो' [ मात्स्यिकभर्तुः ] पा० /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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