________________ wwwmarimmmwarnimawww.w 368 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [षष्ठो[ यथाऽऽज्ञापयति आवुत्तः / यमसदनं प्रविश्य प्रतिनिवृत्तः खल्वेषः ( -इति धीवरं बन्धनान्मोचयति )] / धीवरः--भट्टके ! शम्पदं तुह कीलके मे जीवदे। (- इति पादयोः पतति ) / [ भर्तः ! साम्प्रतं तव क्री तक में जीवितम् (- इति पादयोः पतति)] / नागरकः--उद्धेहिं ! एसे भट्टिणा अङ्गुलीम-मुल्ल-सम्मिदे पारिदोशिए दे पसादीकिदे / ता गेह्न एदं / (-इति धीवराय कटकं ददाति)। [उत्तिष्ठ ! एतद्भाऽङ्गुलीयमूल्यसंमितं पारितोषिकन्ते प्रसादीकृतं, तद् गृहाणेदम् (-इति धीवराय कटकं ददाति )1 / / धीवरः--( सहर्ष, मप्रणामञ्च प्रतिगृह्य- ) अणुग्गहीदोसि / [(सहर्षे, सप्रणामं च प्रतिगृह्य-) अनुगृहीतोऽस्मि / ____ क्रीतकं = क्रीतमिव / अयमहं भवतो दासः संवृत्तोऽस्मीति भावः / भवत्कृपयैवाऽहं सम्पत्ति मुक्तोऽस्मीति यावत् / अङ्गुलीयकस्य मूल्येन संमितं = तुल्यम्अङ्गुलीयकमूल्यसंमितं / प्रसादीकृतं = कृपया दत्तं / कटकं = हस्ताऽऽभरणम् / अर्थात्-चोरी के अपराध में इसको मृत्यु दण्ड होना निश्चित था। पर भाग्य से ही यह मृत्यु के मुख से बच गया है। (धीवर की हथकड़ी बेड़ी आदि बन्धन खोलता है ) / धीवर हे मालिक ! अब तो मेरा जीवन ही आपका खरीदा हुआ हो गया है / अर्थात्-मैं तो अब आपका खरीदा हुआ गुलाम ( हो गया ) हूँ। (पैरों में गिरता है)। नागरक-उठ, उठ, और महाराज ने प्रसन्न हो अंगठी के मूल्य के बराबर यह सोने का कड़ा भी तुझको इनाम के रूप में दिया है। (धीवर को रत्नजडित सोने का कड़ा देता है)। धीवर-( हर्ष पूर्वक प्रणाम करके, कड़े को लेकर ) अहा ! मैं अनुगृहीत हो गया / मैं कृतार्थ हो गया। 1 'यमवसति' पा०।