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________________ ऽङ्कः ] 3 अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 33 इतरोऽपि-( हस्तमुद्यम्य- ) सर्वथा चक्रवर्त्तिनं पुत्रमाप्नुहि / राजा-( सप्रणाम ) प्रतिगृहीतं ब्राह्मणवचः / वैखानसः-राजन् ! समिदाहरणाय प्रस्थिता वयम् / एष चौऽस्मद्गुरोः कण्वस्य कुलपतेः साऽधिदैवत इवं शकुन्तलयाऽनुमालिनीतीरमाश्रमो दृश्यते / न चेदन्यका-तिपातस्तदत्र प्रविश्य प्रतिगृह्यतामतिथिसत्कारः / अपि चहस्तमुद्यम्य = दक्षिणं हस्तमुत्थाप्य / ऊध्र्वं कृत्वा / सर्वथा = अवश्यम् / ... समिधामाहरण समिदाहरणं, तस्मै-समिदाहरणाय = यज्ञोपकरणेन्धन(काष्ठ). संग्रहाय, प्रस्थिताः = चलिताः / कुलपतेः = दशसहस्रच्छात्राध्यापकस्याचार्यस्य / 'मुनीनां दशसाहस्रं योऽन्नपानादिपोषणात् / / अध्यापयति ब्रह्मर्षिरसौ 'कुलपतिः स्मृतः // इति पुराणम् / अधिदेवतया सहितः-साधिदैवतः = शकुन्तलाख्ययाऽधिष्ठाच्या देव्या सनाथः / अनुमालिनीतीरम्', = मालिनीनदीतटदैव्यसदृशदैॉपलक्षितः / 'यस्य चायाम' इति विभक्त्यर्थ, सामीज्ये वाऽव्ययीभावः / अन्यस्य कार्यस्यातिपातः-अन्यकार्यातिपातः = अन्यकार्यविलम्बः / अत्र = कण्वाश्रमे, अतिथिसत्कारः = अतिथिपूजा / शिष्य-(हाथ उठा कर) ठीक है, आप चक्रवर्ती पुत्र को अवश्य प्राप्त करें / राजा-(प्रणाम करता हुआ ) आप लोगों का आशीर्वचन शिरोधार्य है। वैखानस-हे राजन् ! हम लोग तो समिधा ( हवन की लकड़ी) लाने वन को जा रहे हैं। देखिए, यह सामने ही हमारे गुरु कुलपति कण्व का मालिनी नदी के तीर पर आश्रम दीख रहा है, जिसमें कुलपति भगवान् कण्व की कन्या शकुन्तला अधिष्ठात्री देवी की तरह विद्यमान है / यदि आपके किसी आवश्यक कार्य की हानि न होती हो तो, आप इस आश्रम में पधार कर, अतिथि सत्कार ग्रहण करें / और भी 1 'इतरौ'। 2 'हस्तावुद्यम्य'। 3 'एष खलु कण्वस्य' / 4 'काचन्न / 5 'एव' / 6 'आतिथेयः सत्कारः /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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