________________ 364 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [षष्ठोएतावान तावदेतस्याऽऽगमः अथ / मां मारयत, कुट्टयत वा]। नागरकः-( अङ्गुलीयकमाघ्राय-) जालुअ ! मच्छोदलब्भन्तलगदोत्ति गस्थि सन्देहो, जदो अअं आमिसगन्धो वाअदि / आगमो दाणिं एदस्स एशो विमरिसिदब्वो, ता एध, लाअउलं जेव गच्छर / [( अङ्गुलीयकमाघाय- ) जालुक ! मत्स्योदराभ्यन्तरगतमिति नास्ति सन्देहः। यतोऽयमामिषगन्धो वाति / आगम इदानीमेतस्यैष विमष्टव्यः। तदेतम् / राजकुरमेव गच्छामः / रक्षिणी-(धीवरं प्रति-) गच्छ ले गण्ठिच्छेदअ ! गच्छ / ( इति सर्वे परित्रामन्ति ) / [गच्छ रे ग्रन्थिच्छेदक ! गच्छ ( इति सर्वे परिक्रामन्ति ) ] / पणिकेभ्यो दर्शयन्नेव अहं भवद्भिः। गृहीतः = बद्धः / एतावान् = इत्थमेतावत्परिमित एव / आगमः = प्राप्तिवृत्तान्तः। अथ = श्रुत्वैतदिदानीं / कुट्टयत वा = चूर्णयत, ताडयत वा माम् / ____ मत्स्योदरस्याभ्यन्तरे गतं = रोहितोदरकुहरं गतमिदम् / इति = इत्यत्र / आमिषगन्धः = मत्स्यमांसगन्धः। वाति = निस्सरति / आगमः = प्राप्तिवृत्तान्तः / विमष्टव्यः = विमर्शनीयः। विचारणीयः / एतम् = युवामागच्छतम् / राजकुल = राजअंगूठी इसी प्रकार मुझे मिली है। अब चाहे आप लोग मुझे मारिए, या पीटिए / बात सच्ची इतना ही है / __नागरक-( अंगूठी को सूंघ कर ) अरे जालुक ! ( यह दूसरे सिपाही का नाम है )-यह अंगूठी मछली के पेट में से निकली है, इस बात में तो कुछ भी सन्देह नहीं है। क्योंकि इसमें से मछली की गन्ध ( बदबू ) आ रही है। (और यह भी मछुवाही है, इसमें भो सन्देह नहीं है, क्योंकि इसके शरीर से भी मछली की बुरी गन्ध आ रही है ) / अब इसमें बिचारना यही है, कि-यह अंगूठी मछली के पेट में पहुँची कैसे ? / अतः--आओ, हम लोग राजकुल ( महल राजदार ) में ही चलें। वहीं इस बात का ठीक 2 पता लगेगा। 1 विस्रगन्धी गोधादी मत्स्यबन्ध एव निस्संशयम् / अङ्गुलीयकदर्शनमेव विमर्शनीयम्' इति पाठे-विस्रगन्धी = आममांसगन्धवान् / गोधादो = गोधाशनः। गोधा-जन्तुविशेषः ( 'गोह' इतिप्रसिद्धः) / मत्स्यबन्धः = धीवर इत्यर्थः / 2 'विमर्शनीयः' पा० /