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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 365 नागरकः-सूअअ ! इध गोउलदुआले अपमत्ता पडिपालेध मं, जाव इमं अङ्गुलीअअं जहागमं भट्टियो गिवेदिअ, तदो सासणं पडिच्छिअ णिक्कमामि / [सूचक ! इह गोपुरद्वारेऽप्रमत्तौ प्रतिगलयतं माम् , यावदिदमङ्गलीयकं यथाऽऽगमं भर्त्तनिवेद्य, ततः शासनं प्रतीक्ष्य निष्कामामि / / उभौ-पविशदु आवुत्तो शामिप्पशादत्थं / [प्रविशतु आवुत्त स्वामिप्रसादार्थम् ] / . (नागरकः-परिक्रम्य निष्क्रान्तः ) सूचक:--जालुअ ! चिलाअदि क्खु आवुत्ते / [जालुक ! चिरयति खल्बावुत्तः ] 1. गृहम् / ग्रन्थिच्छेदकः = चारः। गोपुरस्य द्वारे-गोपुरद्वारे = नगरद्वारे / 'पुरमात्रेऽपि गोपुर मिति रत्नकोशः। अप्रमत्तौ = सावधानौ / भर्तुनिवेद्य = भत्रे = राजे निवेद्य / शासनम् = तस्य आज्ञां / राजाज्ञाम् / प्रतीक्ष्य = गृहीत्वा / निष्कामामि = निस्सरामि / आगच्छामि / स्वामिनो= राज्ञः / प्रसादायेतिप्रसादार्थ = प्रसन्नतार्थम् / अङ्गुलीयकस्य लाभाद्राजा नूनं त्वयि प्रसीदेदिति भावः / प्राकृतभाषायां च चतुर्थ्यर्थेऽत्र षष्ठी बोध्या / नागरक-( कोतवाल )-अरे सूचक ! तुम लोग यहीं नगर ( राजदर्बार ) के दरवाजे पर ही ठहरो। और सावधानी से मेरी प्रतीक्षा करो। तब तक मैं महाराज के सामने इस अंगूठो को उपस्थित करके, इसके पाने का पूरा पूरा हाल उनसे कह कर, उनकी आज्ञा लेकर, शीघ्र ही आता हूँ। दोनों सिपाही-जाइए, महाराज से इनाम और तरक्की पाने को जाइए। [नागरक-कुछ दूर चल कर, बाहर निकल जाता है / सूचक-अरे जालुक ! कोतवाल साहब को आने में बहुत देर हो रही है, क्या बात है ? 1 'इम' / 2 'प्रतिपालयत इमं, यावद्राजकुलं प्रविश्य निष्क्रामामि' / 3 'प्रतीष्य।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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