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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् __363 [सहजं किल यद्विनिन्दितं न खलु तत्कर्म विवर्जनीयकम् / पशुमारणकर्मदारुणोऽनुकम्पामृदुकोऽपि श्रोत्रियः // 1 // ] / नागरक-तदो तदो ? / [ततस्ततः ? ] / धीवरः-एक्कशि दिअशे मए लोहिदमच्छके पाविदे / तदो खण्डशो कप्पिदे / जाव तश्श उदलब्भन्तले पेक्वामि-दाव एशे महालअणभाशुले अङ्गुलीअए पेक्खिदे ! पच्चा इध विक्कअत्थं दश्शते ज्जेव गहिदे भावमिश्शेहि / एत्तिक्के दाव एदश आगमे / अध मं मालेध, कुट्टेध वा। [एकस्मिन् दिवसे मया रोहितमत्स्यकः प्राप्तः। ततः खण्डशः कल्पितः / यावत्तस्योदराभ्यन्तरे प्रेक्षे,. तावदेतन्महारत्नभासुरमङ्गुलीयकं प्रक्षितं / पश्चादिह विक्रयार्थं दर्शयन्नेव गृहीतो भावमित्रैः / हिंसने नैसर्गिके कर्मणि शामित्रे त्यक्तदयः सन् प्रवर्तत एवेति नैसर्गिकं कर्म न निन्दनीयमित्याशयः। 'स्वधर्मे निधनं श्रेयः' इति, 'सहज कर्म कौन्तेय ! सदोषमपि न त्यजेत् / सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाऽग्निरिवाऽऽवृताः // इति च भगवद्वचनात् / [ वैधम्र्येण दृष्टान्तः / अप्रस्तुतप्रशंसा / 'सुन्दरी वृत्तम्' ] // 1 // ततस्ततः = अग्रे-अग्रे / त्वरितं कथयेति शेषः / त्वरायां द्विरुक्तिः / खण्डशः = खण्डं खण्डं / कल्पितः = कर्तितः / 'कल्पनं कर्त्तने, क्लप्तौ' इति विश्वः / उदरस्याऽभ्यन्तरं तस्मिन् = दरमध्ये / महता रत्नेन भासुर-महारत्नभासुर = महाहमणिना देदीप्यमानं / विक्रयार्थ = विक्रय कत्तम् / दर्शयन् = रत्ना हृदय वाले श्रोत्रिय ( वैदिक विद्वान् ) ब्राह्मण भी यज्ञ में पशुओं को अपने हाथ से मारने का कर कर्म करते ही हैं // 1 // नागरक-( कोतवाल)-हाँ, हाँ, आगे कहा, तब आगे क्या हुआ ? | धीवर-एक दिन मैंने रोहू मछली पकड़ी / और उसको काट कर टुकड़े 2 करने पर, जब मैंने उसके पेट के भीतर देखा, तो महारत से चमचमाती हुई यह अंगूठी दिखाई दी। फिर इसे बेचने के लिए यहाँ हस्तिनापुर के बाजार में मैंने ज्यों ही इसे दिखाई, त्यों ही आप लोगों ने मुझे पकड़ लिया। बस यह
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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