________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 355 राजा-यथा गुरुभ्यो रोचते। पुरोहितः- ( उत्थाय-) वत्से ! इस इतोऽनुगच्छ माम् / शकुन्तला-भअवदि ! वसुन्धरे ! देहि मे अन्तरं / [ भगवति ! वसुन्धरे ! देहि मेऽन्तरम् ] / (-इति सह पुरोधसा, गौतमी-तपस्विभिश्च रुदती निष्क्रान्ता ) / ( राजा-शापव्यवहितस्मृतिः शकुन्तलागतमेव चिन्तयति ) / (नेपथ्ये-) .. आश्चर्यमआश्चर्यम) राजा-( कर्णं दत्त्वा- ) किं नु खलु स्यात् / / पुरोधाः-(प्रविश्य, सविस्मयं- ) देव ! अद्भुतं खलु संवृत्तम् !! यदाऽस्याः पुत्रो, न तथा भवेत्तदा / स्थितं = निश्चितमेव / 'नेयं भवतां पत्नीति निर्णय इत्थं स्यादित्येषा स्वपितुराश्रमे एव तदा गमिष्यतीत्यर्थः / इत इतः = अमुना मार्गेण / अन्तरम् = अवकाशम् / स्वोदरे स्थानमिति यावत् / शापेन व्यवहिता स्मृतिर्यस्यासौ-शापमूढनतिः। शकुन्तलागतं = तां विषयी कृत्यैव / किं न खलु स्यादिति / किमेतत्स्यादित्यर्थः / किमिदं जातमित्याशयः / में स्थान दीजिएगा। पर यदि इसके विरुद्ध-उक्त चक्रवर्ती राजा के लक्षणों से रहित ही-इसके पुत्र होगा, तो इसका अपने पिता के पास, उनके आश्रम में जाना निश्चित ही है। राजा-जैसा गुरुजी को (आपको ) अभीष्ट हो, वैसा ही करें। पुरोहित-( उठकर ) बेटी ! इधर से मेरे पीछे 2 आ, इधर से। शकुन्तला-हे भगवति वसुन्धरे ! मुझे अपने गर्भ में स्थान दे। [ इस प्रकार रोती हुई शकुन्तला पुरोहित जी के और गौतमी तथा तपस्वियों के साथ बाहर जाती है / [नेपथ्य में-] बड़े ही आश्चर्य की बात है ! बड़े ही आश्चर्य की बात है !! / राजा-( कान देकर सुनता हुआ-) हैं ! यह आश्चर्य की क्या बात हो सकती है ? / . ___ पुरोहित-(भीतर आकर, आश्चर्यान्वित हो-) महाराज ! बड़ी ही अद्भुत घटना हुई।