________________ अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [पञ्चमोपुरोहितः-(विचार्य-) यदि तावदेव क्रियताम्-'। राजा-अनुशास्तु मां गुरुः। पुरोहितः-अत्रभवती तावदा प्रसवादस्मद्गृहे तिष्ठतु। ... राजा-कुत इदम् ? / पोहित:-त्वं साधुनैमित्तिकैरुपदिष्टपूर्व:--'प्रथममेव चक्रवतिनं पुत्रं जनयिष्यसीति / स चेन्मुनिदौहित्रस्तल्लक्षणोपपन्नो भविष्यति, ततोऽभिनन्य, शुद्धान्तमेनां प्रवेशयिष्यसि / विषय्यये त्वस्याः पितुः समीपगमनं स्थितमेव / [विरोधो नाम सन्ध्यङ्गम् , 'उत्तरोत्तरवाक्यन्तु विरोधः' इत्युक्तलक्षणमुपदर्शितम्'भोः सत्यवादिन्' इत्यादिनैतदन्तेन] // 32 // ___एवम् = इत्थम् / वक्ष्यमाण त्या / अनुशास्तु = उपदिशतु / आप्रसवात् = गर्भविमोक्षपर्यन्तं / पुत्रजन्म यावत् / कुत इदं = क रमादेवम् ? / साधवश्च ते ( निमित्तं जानन्तीति-) नैमित्तिकाश्च तैः-साधुनैमित्तिकैः = सिद्धैः, विश्वस्तैः शिष्टैर्देवजैः। पूर्वमुपदिष्ट उपदिष्टपूर्वः = पूर्वमभिहितः। मुनेः = कण्वस्य। दुहितुरपत्य-दौहित्रः-शकुन्तलापुत्रः। तल्लक्षणोपपन्नः = चक्रवर्तिलक्षणयुक्तः / एनामभिनन्द्य = प्रशंसापूर्वकं शकुन्तलामेनाम् / शुद्धान्तम् = अन्तःपुरं / विपर्यये : यह झूठ बोल रही है, तो इसके कहने से इस परस्त्री को स्वीकार करके परस्त्रीगमनरूपी घोर पाप से दूषित होऊँगा / अतः आपही ऐसे समय कहिएअब मैं क्या करूँ ? // 32 // पुरोहित-(विचार कर ) तो फिर आप ऐसा करिए / राजा-हाँ, गुरुजी, आप ही मुझे उचित शिक्षा दे। पुरोहित-यह श्रीमती ( शकुन्तला , बालक होने तक हमारे ही घर में निवास करे। राजा-ऐसा क्यों ? / पुरोहित-क्यों कि आपको बड़े-बड़े विश्वासी सिद्ध ज्योतिषियों ने (भविष्यवेत्ताओं महात्माओं ने) पहले से ही कह रखा है, कि- आपके पहिले ही पहले चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न होगा। अब यदि मुनि ( कण्व ) का दौहित्र ( मुनिपुत्री शकुन्तला का पुत्र ) चक्रवर्ती राजा के लक्षणों से युक्त ही उत्पन्न होगा, तब तो यह आपकी ही स्त्री है और वह बालक भी आपका ही है, यह बात सिद्ध हो ही जाएगी / तब आप इसका सत्कार करके इसे अपने महल 1 'मुनेदौहित्रः' पा०।