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________________ ऽङ्कः] 23 अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 353 राजा-(पुरोधसं प्रति- ) भवन्तमेवाऽत्र गुरुलाघवं पृच्छामि / मूढः स्यामहमेषा वा वदेन्मिथ्येति संशये / दरित्यागी भवाम्याहो!, परस्त्रीस्पर्शपांसुलः 1 // 32 // पाद्वा। 'अन्यासङ्गादिति पाटान्तरे-अन्यस्य कार्यस्य, शापस्य वा / आसङ्गात् = संपर्कात् / सम्बन्धात्-इत्याद्यर्थो बोध्यः / 'विस्मृतो भवानिति पाठे,-विस्मृतमस्त्यस्येत्यर्थे अर्शआदित्वादच / विस्मृतः = विस्मृतवान् / अधर्मभीरोः = पापाद्भीतस्य तव / दारपरित्यागः = स्वपरिणीतापरित्यागः / कथं = कथमुचितो भवेत् / नोचितो भवेदित्याशयः। अधर्मभीरोस्तवाऽधर्मानुष्ठानमेतदनुचितमिति भावः / [ 'उत्प्रासनन्तूपहासो योऽसाधौ साधुमानिनी'त्युक्तेरुत्प्रासो नाम नाट्यालङ्कारः ] / गुरुलाघवं = गौरवलाघवम् / कर्त्तव्याऽकर्त्तव्यं / किमत्र मया कर्त्तव्यमिति यावत् / मूढ इति / अहम् = अहमेव / मूढः = केनापि हेतुना-विस्मरणशीलः ! स्यां = यदि भवेयम् / वा = अथवा / एषा = शकुन्तला वा / मिथ्या = मुधा / वदेत् = कथयेत् / इति संशये = इत्थं सन्देहे / 'अहं वा मूढः, इयं वा मिथ्या भाषत' इति सन्देहे सतीति यावत् / दारत्यागी= स्वस्त्रीत्यागपापयुतः। आहो!= अथवा / परस्य स्त्रियाः स्पर्शेन पांसुलः = परदारसंसर्गदूषितः / परदाराभिमशी। 'पांसुलः पुंश्चले' इति विश्वः / यद्यहं मूढस्तदाऽस्यारत्यागात् पापी स्यां, यदीयं मिथ्या भाषते, तहि परकलनसङ्ग्रहाचाऽहं पापीयानिति यथासङ्ख्यमन्वयः / विवाह आदि को किसी कारण से तुम भल गये हो, तो तुम्हारा अपनी स्त्री का इस प्रकार अधर्म के भय से (पराई स्त्री की शङ्का से ) परित्याग ( उसका यों छोड़ना) क्या उचित होगा ? / राजा-(पुरो हत से ) मैं आपसे ही- यह पूछता हूँ कि-'इस प्रसङ्ग में मुझे क्या करना चाहिए। क्या उचित है' 'क्या अनुचित है। ऐसे समय में मेरा क्या कर्त्तव्य है' ?, ऐसे धर्मसङ्कट में मुझे क्या करना चाहिए ? / कहिए,-'मैं ही भूल रहा हूँ' या- 'यही (शकुन्तला ही) झूठ बोल रही है' इस संशय में मैं अपनी स्त्री को छोड़ दूँ,या पर स्त्री के स्पर्श से दूषित बन ? ! ___ अर्थात्-यदि किसी कारण से मैं ही भूल रहा हूँ, और यह सचमुच मेरी ही स्त्री है, तो अपनी स्त्री को छोड़ने से घोर पाप मुझे लगेगा। और यदि
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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