SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [पञ्चमो[ नूनं शक्रोवतारे शचीतीर्थोदकं वन्दमानायाः प्रभ्रष्टमङ्गुलीयकम् / राजा-( सस्मितम्- ) इदं तत् ,-प्रत्युत्पन्नमति स्त्रैणम्' इति यदुच्यते ! / शकुन्तला-एत्थ दाव विहिणा दंसिदं पभुत्तणम् / अवरं दे कधइस्सं / [अत्र तावद्विधिना दर्शितं प्रभुत्वम् / अपरं ते कथयिष्यामि]। राजा-श्रोतव्यमिदानीं संवृत्तम् / शकुन्तला–णं एक्कस्सि दिअहे वेदसलदामण्डवे णलिणीवत्तभाअणगद उदअं तुह हत्थे सण्णिहिदं आसो / वताराभ्यन्तरे = तन्नाम्नि प्रदेशे। शचीतीर्थ = गङ्गातीरे सरोवरविशेषः / तस्यउदकं = जलम् / वन्दमानायाः = नमस्कुर्वाणायाः / प्रभ्रष्टं = गलितम् / स्त्रैण = स्त्रीणां समूहः / प्रत्युत्पन्नमतिः = तात्कालिकप्रतिभाशालि-भवति / इति यदुच्यते = लोके जनैरुच्यते / इत्थं यल्लोकप्रसिद्धम् / इदं तत् = प्रत्युत्पन्नमतित्वं तदिदम् / ( 'हाजिरजबाबी' ) / अत्र = अङ्गुलीयकदर्शने / विधिना = अदृष्टेन / प्रभुत्वं = स्वसामर्थ्यम् / 'अङ्गुलीयकन्तु मे भाग्यवैपरीत्यापतित मिति भावः / अपरं = प्रत्यभिज्ञानान्तरम् / संवृत्तं = जातं / श्रोतुमनिच्छन्नपि श्रोष्याम्येव राजा-(मुसकुराकर ) 'स्त्रियां प्रत्युत्पन्नमति (हाजिरजवाब, बात बनाने में पटु) हुआ करती हैं। यह जो कहावत लोक में प्रसिद्ध है, वही बात यह है!। अर्थात्-यह सब तुमारा 'त्रिया चरित्र' मात्र है। और कुछ भी इस बात में सार नहीं है। शकुन्तला-अच्छा, यहाँ तो ( अंगठी के विषय में तो) देव ( दुर्भाग्य ) ने अपना प्रभुत्व दिखा दिया / ( मुझसे अंगूठी छीन ली)। परन्तु मैं दूसरी बात करती हूं। राजा-अच्छा, कहो, उसे भी हमें सुनना ही पड़ेगा। शकुन्तला-आश्रम में एक दिन की बात है, वेतसलता के मण्डप में तुमारे हाथ में जलसे भरा हुआ कमलिनी ( कमल की लता) के पत्ते का दोना था। 1 'शक्रावताराभ्यन्तरे' पा० / 2 'इदं तावत्प्रत्युत्पन्नमतित्वं स्त्रीणां /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy