________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 331 मुष्टं प्रतिग्राहयता स्वमर्थ, पात्रीकृतो दस्युरिवाऽसि येन // 21 // शारद्वतः--शार्ङ्गरव ! विरम त्वमिदानीम् / शकुन्तले ! वक्तव्यमुक्तमस्माभिः / सोऽयमत्रभवानेवमाह। दीयतामस्मै प्रत्ययप्रतिवचनम् / शकुन्तला-(स्वगतम्- ) इमं अवत्थन्तरं गदे तादिसे अणुराए वाहम् / अनुमन्यमानः = अनुमोदमानः। नाम प्रसिद्धौ / अमौ मुनिः = कण्वः / त्वया मा तावत् = नैव खलु / विमान्यः = अवमाननीयः। नैव मुनिर्विमान्यः इति पाठे तु 'मा ताव'दिति नात्र श्लोके योज्यम् / किन्तु पृथगेव तस्यार्थः कार्यः। स्वानुपस्थितौ सरलां स्वदुहितरं शकुन्तला स्वेच्छयैव परिणीय तस्याः शीलस्य खण्डयितुस्ते दस्योरिवाऽशिष्टव्यवहारमविगणय्य-चौरायैव चारितं वस्तु प्रयच्छनिव-स्वदुहितरं तुभ्यमेव ददन्मुनिस्त्वया न तिरस्करणीयः / अन्यथा क्रुद्धः काल इव त्वां स विलयं नेष्यतीति भावः / [समो, विषमश्चाऽलङ्कारः। उपमाऽनुप्रासौ / 'उपजातिवृत्तम्' ] // 2 // एवमाह = 'न मया परिणीतेय'मित्याह / प्रत्यययुक्तं प्रतिवचनं-प्रत्ययप्रतिवचनं = साभिज्ञानमुत्तरम् / तादृशे = तादृशीं परां काष्ठां गते / अनुरागे = स्नेहे / इदमवस्थान्तरम् = धन दान दे दे, उसी प्रकार चोरी, से तुमारे द्वारा ऋषि की कन्या का विवाह कर लेने पर भी, तुझ चोर को ही पात्र समझ कर, अपनी कन्या को सौंप देने वाले, दयालु महर्षि कण्व को तुम इस प्रकार अपमानित मत करो। ( नहीं तो तुमारा इसमें विनाश ही समझो ) // 21 // शारद्वत-हे शाझरव ! अब तुम चुप रहो / हे शकुन्तले ! हमने जो कुछ राजा से कहना था, सो कह दिया / पर ये राजा तो ऐसी बात कह रहे हैं। यह तो तुमसे विवाह करने को ही नाहीं कह रहे हैं। अतः अब तूं ही इनको विश्वासप्रद कोई ऐसी बात कह, जिससे इनको विवाह का विश्वास हो सके। ___शकुन्तला-(मन ही मन ) जब उस प्रकार का ( आश्रम में दिखाया गया ) इनका अनुराग भी आज इस दशा को पहुँच गया, ( अर्थात् अनुराग तो