________________ ~ ~ NA ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 323 गौतमी–णावेक्खिदो गुरुअणो इमिए, ___तुए पुच्छिदो ण बन्धुजणो / एक्ककस्स अ चरिए, भणोमि कि एकमेक्कस्म 1 // 17 // [नापेक्षितो गुरुजनोऽनया, त्वयाऽपि न पृष्टो बन्धुजनः / ___ एकैकस्य च चरिते भणामि किमकैकम् ? // 17 // ] शकुन्तला-( आत्मगतम्- ) किण्णु क्खु अजउत्तो भणिस्सदि ? / [(आत्मगतं-) किं नु खल्वार्य्यपुत्रो भणिष्यति ? ] / राजा-( साऽऽशकमाकर्य- ) अये ! किमिदमुपन्यस्तम् ? / नापेक्षित इति / अनया = शकुन्तलया / गुरुजनः = अस्मदादिलक्षणो मान्य जनः, कण्वादिश्च / नापेक्षितः =न गणितः / न पृष्टः / त्वयाऽपि = राज्ञाऽपि / बन्धुजनः = एतद्वन्धुवर्गः / न पृष्टः / तदेवम्-एकैकस्य = युवयोः परस्परस्य / चरिते = आचरिते / एकैकं = परस्परं भवन्तौ / किं भणाभि / उभयारपराधे नैक उपालभ्यते इत्याशयः / अंतो नोचितं त्वं कृतवानसीति ध्वन्यते / [गाथा ] // 17 // 'अये' इत्याश्चर्ये / इंदं = स्वेच्छापरिणयनादिकम् / किं = कुतः / किं वा / हे राजन् ! इस शकुन्तला ने अपने गुरुजनों का कुछ भी ख्याल नहीं किया और उनसे इस गान्धर्व विवाह के विषय में कुछ भी नहीं पूछा / और आपने भी बन्धु-बान्धवों से (हमसे) इस विषय में कुछ नहीं पूछा / अतः तुम दोनों ही एक ही प्रकार के दोषी हो, अतः किसको दोष दिया जाए। अर्थात् एक अपराधी हो तो उसको कहा-सुना जाए, पर जब दोनों ही दोषी हैं, तब किसको, किसके लिए दोष दिया जाए ? // 17 // शकुन्तला-(मन ही कन ) देखें-अब आर्यपुत्र ( मेरे भर्ता दुष्यन्त) इस विषय में क्या कहते हैं ? / राजा-( बड़ी आशङ्कापूर्वक सुनकर व चकित होकर-) हैं ! हैं ! यह क्या कहा जा रहा है ! / यह कैसी बात आप लोग कह रहे हैं ? ! 1 ‘ण तुएवि पुच्छिदो बन्धु' / 2 'भणादु' [ भणतु] / 3 'एक एक्कस्सिं' / [एक एकस्मिन् ] /