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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 279 सामान्यप्रतिपत्तिपूर्वकमियं दारेषु दृश्या त्वया, भाग्याधीनमतः परं, न खलु तद्वाच्यं वधूबन्धुभिः // 19 // विचिन्त्य = विचार्य / आत्मनः = स्वस्य / उच्चैः = उन्नतं / कुलं = वंशं च-विचार्य, किञ्च-त्वयि-अस्याः = शकुन्तलायाः / कथमपि = केनापि प्रकारेण, साक्षात् , परोक्ष वा, अगन्धवकृतां-न बान्धवैः कृतां = साहजिकीम् / तां= बहुशः त्वयाऽनुभूतां / स्नेहप्रवृत्ति = स्नेहप्रवाहम् , स्नेहाधिक्यं च,-विचार्य / सामान्या = सर्वस्त्रीसाधारणी, या-प्रतिपत्तिः = गौरवम् / 'प्रतिपत्तिः पदे, प्राप्तौ, प्रवृत्ती, गौरवेऽपि चेति विश्वः / 'प्रवृत्तिः कथिता वृत्तौ, प्रवाहोदन्तयोरपी'ति च कोशः / तत्पूर्वकं = सर्वसाधारणगौरवपूर्वकं तु, त्वया दारेषु = स्वकीयभार्यासु, इयं = शकुन्तला / दृश्या = दर्शनीया / गणनीया / अतः परम् = इतोऽधिकं, प्रधानमहिष्यादिपदन्तु / भाग्यायत्तं = भाग्याधीनं / तत्-बन्धुबन्धुभिः = अस्मादृशैः कन्यापक्षीयैः / न खलु वाच्यं = नैव किल कथनीयं / प्रधानपदन्तु स्त्रीणां स्वभाग्याधीनमित्याशयः / [ काव्यलिङ्गम् / अप्रस्तुतप्रशंसा / अनुप्रासः / शार्दूलविक्रीडितम् ] // 19 // हमारी प्रतिष्ठा और मानमर्यादा को अच्छी तरह ध्यान में रखते हुए, तथा अपने उच्च कुल की ओर भी देखते हुए, तथा तुमारे में (इस) शकुन्तला की अपने बन्धु-वान्धुवों से नहीं कराई हुई, अतएव स्वाभाविक इस विशिष्ट प्रीति को भी देखते हुए, इस शकुन्तला को अपनी और स्त्रियों के बराबर ही समझना' यही मेरा कहना है। इसके आगे तो ( विशिष्ट देवी' पद प्रदान आदि तो) सब भाग्याधीन है / अर्थात् अपने गुणों से यह स्वयं ही उस पदको अपनी योग्यता से प्राप्त कर सकती है। इसके लिए तो स्त्री के बन्धु-बान्धवों को कुछ कहना ही नहीं चाहिए / अर्थात्-मेरी इस कन्या शकुन्तला को तुम कम से कम उसी प्रकार स्नेह से रखना, जिस प्रकार तुम अपनी और पत्नियों को रखते हो। इससे अधिक 'इसे ही महारानी बनाना' यह बात तो मैं नहीं कहना चाहता हूं, क्योंकि पति के विशेष स्नेह और अनुराग, तथा महारानी पद आदि की प्राप्ति तो उसके अपने भाग्य और गुणों के ही अधीन है। अतः उसके लिए कहना तो हमारा व्यर्थ ही है // 19 //
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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