SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 261 गौतमी-जादे ! एस दे आणन्दबाप्फ-परिवाहिणा लोअणेण परिस्सजन्तो विभ गुरू उबस्थिदो / ता समुदाआरं पडिवजस्स। [जाते ! एष ते आनन्दबाष्पपरिवाहिणा लोचनेन परिष्वजमान इव गुरुरुपस्थितः / तत्समुदाचारं प्रतिपद्यस्व ] ! (शकुन्तला- सव्रीडं वन्दनां करोति)। कण्वः-वत्से ! ययातेरिव शर्मिष्ठा भर्बहुमता भव / पुत्रं त्वमपि सम्राजं सेव पूरुमवाप्नुहि // 9 // युगलं क्षौमयुगलं = कौशेयवस्त्रयुग्मम् / आनन्देन यद् बाष्पं तत्परिवहति तच्छीलेन = हर्षाणि परिमुञ्चता / लोचनेन = नयनेन-उपलक्षितः / परिष्वजमान इव = आलिङ्गन्निव त्वां / समुदाचारम् = उचितमाचारम् / उत्थानाऽऽसनदानप्रणामादिकम् / प्रतिपद्यस्व = स्वीकुरु / विधेहि / ययातेरिति / ययातेः = ययातिनाम्ना प्रसिद्धस्य सोमवंशीयस्य राज्ञः / शर्मिष्ठादेवयानीनामकभार्याद्वयवतः,-शर्मिष्ठेव, त्वमपि अनेकमार्यस्य-पत्युः = दुष्यन्तस्य / बहुमता = प्रिया-भव। किञ्च-सा = शर्मिष्ठा, पूरुमिव = तन्नामकं सम्राजं पुत्रमिव / त्वमपि सम्राजं = चक्रवर्तिनं / पुत्र = भरताख्यं तनयम् / अवाप्नुहि = लभस्व [ उपमा / क्रमो नाम गौतमी-हे पुत्रि ! देख, जिनके नेत्रों से आनन्दाश्रु बह रहे हैं और जो अश्रप्लुत नेत्रों से ही मानों तुझे छाती से लगाकर वात्सल्य से तेरा आलिङ्गन कर रहे हैं, ऐसे ये तेरे पिता कण्व तेरे सामने उपस्थित हैं, अतः तूं उचित अभ्युस्थान-प्रणाम आदि आचार का पालन कर इनका संमान कर / अर्थात्-इन्हें उठकर प्रणाम कर। . शकुन्तला-लज्जित भाव से वन्दना (प्रणाम ) करती है ] / कण्व-हे वत्से ! जैसे पूर्वकाल में राजा ययाति के शर्मिष्ठा नामक रानी बहुमता थी, वैसे ही तूं अपने पति दुष्यन्त की बहुमता ( अत्यन्त प्यारी) हो।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy