________________ wwwnwar ङ्कः] . अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 253 स्वस्तिवाचनिकाभिः तापसीभिरभिनन्द्यमाना तिष्ठति शकुन्तला। तदुपसर्पाव एनाम [(-इति उभे तथा कुरुतः )] / - (ततः प्रविशति यथानिर्दिष्टव्यापारा, सपरिवारा शकुन्तला ) / शकुन्तला--भअवदीओ वन्दामि / [ भगवतीर्वन्दे ] / गौतमी--जादे ! भत्तुणो बहुमाणसुहहेतुअं देवीस अहिगच्छ / [जाते ! भत्तुं बहुमानसुखहेतुकं देवीशब्दमभिगच्छ ] / तापस्य:--वीरप्पसविणी होहि / [वीरप्रसविनी भव] / ... (-इत्याशिषो दत्त्वा गौतमीवजं सर्वा निष्क्रान्ताः)। राख्यमङ्गलधान्याभिः। 'प्रतीष्टे ति पाठेऽपि-प्रतीष्टाः = गृहीताः / स्वस्तिवाचनिकाभिः = मङ्गलमयशब्दोच्चारणचतुभिः / अभिनन्द्यमाना = स्तूयमाना। दत्तोत्साहा / भगवतीः = तापसीः / जाते = पुत्रि ! / बहुमानस्य, सुखस्य च हेतुकं = संमानसुखसूचकं / देवीशब्दं = पट्टमहिषीनामधेयम् / 'देवी कृताभिषेकः यां' इत्यमरा / वीर (तिमी ) के चावलों को हाथ में लिए हुए स्वस्तिवाचन, मङ्गलाचार करने वाली, तथा आशीस एवं शिक्षा आदि देनेवाली तापसी सौभाग्यवती स्त्रियों से अभिनन्दन की जाती हुई.( लाड-प्यार-चाव की जाती हुई, तथा आशीर्वाद दी जाती हुई ) यहाँ बैठी है। आओ, इसके पास चलें / : (दोनों शकुन्तला के पास जाती हैं ) / [पूर्वोक्त प्रकार से मङ्गलाचार करने वाली तापसियों आदि से घिरी हुई, आसन पर बैठी हुई, शकुन्तला का प्रवेश ] / शकुन्तला-हे भगवतियो ! (हे देवियों), मैं आप लोगों को सादर प्रणाम करती हूँ। ____ गौतमी-हे पुत्रि ! अपने पति से संमानसूचक और सुखप्रद 'देवी' शब्द को प्राप्त कर / अर्थात्-अपने पति की तूं पटरानी (प्रधान राजमहिषी ) हो। . अन्य तापसियाँ-हे पुत्री! तूं वीर पुत्र को जन्म देने वालो हो। (इस प्रकार आशीवांद देकर सब तापसी स्त्रियाँ जाती हैं, केवल गौतमी ही वहाँ उसके पास रह जाती है)।