________________ 228 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [चतुर्थो___ [अत्र तावद्विश्वस्ता भव / नहि तादृशा आकृतिविशेषा गुणविरहिणो भवन्ति / एतावत् पुनश्चिन्तनीयं,-'तातस्तीर्थयात्रातः प्रतिनिवृत्त इमं वृत्तान्तं श्रुत्वा न जाने किं प्रतिपत्स्यते' इति ] / अनसूया-जधा में पुच्छसि, तधा अभिमदं तादस्स / [ 'यथा मां पृच्छसि, तथा अभिमतं तातस्य]। प्रियंवदा--कधं विभ ? / [ कथमिव ? ] / विस्रब्धा / तादृशाः = तथाविधाः। दुष्यन्ते दृश्यमानाः। आकृतिविशेषाः = महापुरुषत्वादिसूचकाश्चिह्नविशेषाः / गुणैर्विरहोऽस्त्येषां ते-गुणविरहिणः = सौजन्यादिगुणरहिताः। 'यत्राऽऽकृतिस्तत्र गुणा वसन्ती'त्यभियुक्तोक्तेः / तातः = कण्वः। तीर्थयात्रातः = सोमतीर्थयात्रातः। प्रतिनिवृत्तः = परावृत्तः। इमं वृत्तान्तं = शकुन्तलायान्धर्व विवाहरूपं वृत्तं। प्रतिपत्स्यते = ज्ञास्यति / करिष्यति वा / यथा = यदि / मां पृच्छसि चेत्तदाऽभिमतं तातस्य = कण्वस्येदं संमतमेवेति मे मतम् / इसकी तो तूं चिन्ता बिलकुल ही मत कर। क्योंकि-ऐसी सुन्दर और शान्त आकृति वाले महा पुरुष कभी गुणों से ( दया, दाक्षिण्य, कृतज्ञता आदि गुणों से ) रहित नहीं हो सकते हैं। अतः 'राजा इसे भूल जायगा' यह तो सन्देह तुम्हें करना ही नहीं चाहिए / हाँ. यह एक अवश्य चिन्ता की बात है कि-- तात कण्व जब तीर्थ यात्रा से लौटेंगे, तब इस बात को सुनकर, न जाने क्या कहेंगे ? / इस बात को ( शकुन्तला के स्वेच्छा विवाह को) स्वीकार करेंगे, या राजा को शाप दे देंगे-कुछ कहा नहीं जा सकता है / अतः मुझे तो इसी बात की चिन्ता हो रही है। अनसूया- यदि हूँ मुझसे पूछती है, तो मेरी समझ में तो यह बात (शकुन्तला का यह गान्धर्व विवाह) तात कण्व को भी अवश्य पसन्द आवेगी। प्रियंवदा-यह कैसे ? / 1 'यथाऽहं प्रेक्षे' इति, 'यथाऽहं पश्यमि' इति वा पाठे यथाशब्दो योग्यतायां / योग्यतया = सुष्ठु, अहं जानामीत्यर्थः।