________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 229 अनसूया--अणुरुवस्स वरस्स हत्थे कण्णा पडिवादणीअत्ति अर्थ दाव पढमो कप्पो / तं जइ देवं सम्पादेदि, णं कअत्यो गुरुअणो / [अनुरूपस्य वरस्य हस्ते कन्यका प्रतिपादनीयेति-अयं तावत् प्रथमः कल्पः / तं यदि दैवं सम्पादयति, ननु कृतार्थो गुरुजनः] / प्रियंवदा--एवण्णेदं / ( पुष्पभाजनं विलोक्य-) सहि, अवचिदाई क्खु वलिकम्मपज्जत्ताई कुसुमाइं। [ एवमेतत् / ( पुष्पभाजन विलोक्य-) सखि! अवचितानि खलु बलिकर्मपर्याप्तानि कुसुमानि]। अनसूया--णं सउन्तलाए वि सोहग्गदेवदाओ अच्चिदम्वा / ता अवराई वि अवचिणुह्म। [ननु शकुन्तलाया अपि सौभाग्यदेवता अर्चितव्यास्तदपराण्यप्यर्वाचनुवः / अनुरूपस्य = योग्यस्य / कल्पः = विधिः। कर्त्तव्यं कर्म / तत् = कर्त्तव्यं कर्म / दैवं = भाग्यं / स्वत एव तथा भवेदिति यावत् / ननु = निश्चितं / कृतार्थः = कृतकृत्यः। तत्रान्यथाप्रतिपत्तेरवसर एंव नास्तीत्यर्थः / पुष्पभाजनं = पुष्पकरण्डकं / खलु = निश्चयेन / बलिकर्मणे पर्याप्तानि / सौभाग्यदेवताः = मङ्गलागौर्यादयः / सौभाग्याधिष्ठातृदेवता हिं विवाहत आरभ्यावश्यं स्त्रीभिः पूज्याः। अपराण्यपि = इतोऽधिकान्यपि कुसुमानि / ___ अनसूया- 'योग्य वर ( भत्ता ) के हाथ में कन्या को देना'-यही तो एक विवाह सम्बन्ध में देखने को मुख्य बात है, उसको यदि दैव (भाग्य) ही स्वयं सम्पादन कर देता है, ( दैवात् ऐसा योग्य वर स्वयं ही प्राप्त हो जाता है,) तो गुरु जन ( माता पिता आदि ) कृतार्थ हो हो गये। अतः दुष्यन्त ऐसा योग्य वर यदि स्वयं ही शकुन्तला को मिल गया, तो तात कण्व प्रसन्न ही होंगे। प्रियंवदा-ठीक बात है। (फूलों की डलिया की ओर देखकर ) हे सखि ! बलिकर्म ( देवपूजा, गृहपूजा आदि ) के लायक तो फूल बहुत हो गए। अत:-अब तो फूल चुनना ( तोड़ना) बन्द करें / अनसूया-हे सखि ! शकुन्तला के सौभाग्य देवताओं का भी तो आज से पूजन करना है, अतः और भी फूल चुनने (इकट्ठे करने) चाहिएं। [वित्रा