________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 183 प्रियंवदा-पं. इमस्सि सुओदरसुउमारे णलिणीवत्ते पदच्छेदभत्तीए णहेहिं अलिहीअदु / [ नन्वस्मिञ्छुकोदरसुकुमारे नलिनीपत्रे पदच्छेदभक्त्या नखैरालिख्यताम् / शकुन्तला-(यथोक्तं रूपयित्वा-)हला ! सुणध दाव सङ्गदत्था ण वत्ति / [ ( यथोक्तं रूपयित्वा-) हला ! शृणुतं तावत्-सङ्गतार्था, न वेति ] / उमे-भवहिद म्ह / [अवहिते स्वः] / . (शकुन्तला-वाचयति)। तुज्म ण आणे हिअअं, मम उण मअणो दिवा वि, रत्तिं वि / णिक्विव ! दावइ बलिअं, तुह हत्थमणोरहाई अङ्गाई। लेखनोपकरणानि, लेखनी-मसीपात्र-पत्रादीनि / शुकस्योदरमिव सुकुमारे शुकोदरसुकमारे = कीरक्रोडकोमले / नलिनीपत्रे = पद्मिनीपत्रे / पदानां छेद एव भक्तिस्तया पदच्छेदभक्त्या = पदच्छेदविधानमार्गेण / नखैरालिख्यतां = नखैरक्षराणि लिख / तावत् = लेखनात्पूर्वं / सङ्गतोऽर्थोऽस्याः-सा सङ्गतार्था = युक्तार्था / अवहिते = दत्तावधाने / . . प्रियंवदा-सुग्गे के उदर ( पेट ) की तरह सुकुमार (कोमल व चिकने) इस कमलिनी के हरे 2 पत्ते पर ही नखों से 'पत्रच्छेद्य' ( पत्तों पर नाना प्रकार के लेख, चित्र आदि-लिखने की कला ) की तरह ही तुम पत्र लिखो। शकुन्तला-( नखान से कमलिनी के कोमल पत्ते पर कवितामय प्रेम-पत्र लिखकर) हे सखियों ! तुम लोग भी इसे सुन लो, मैंने ठीक लिखा है, या नहीं ? / दोनों सखियाँ-हम सावधान हो इसे सुन रहीं हैं, सुनाओ। [शकुन्तला-पत्र को बाँचती हैं ] / 1. 'पत्रच्छेद्यभक्त्येति शोभनः पाठः / पत्रच्छेद्यं-पत्रलेखनकलाभेदः /