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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 181 सख्यौ -अइ अत्तगुणावमाणिणि ! को णाम सन्दावणिज्वाणहेतुअं सारदीअं जोणं आदवत्तेण णिवारेदि ? / [अयि आत्मगुणावमानिनि ! को नाम सन्तापनिर्वाणहेतुकां शारदीं ज्योत्स्नामातपत्रेण निवारयति / शकुन्तला-(सस्मित- ) णिओइदाह्मि ( -इत्युपविष्टा चिन्तयति ) / ( सस्मित - ) नियोजिताऽस्मि ( –इत्युपविष्टा चिन्तयति )] / बहिरवतिष्ठते / हि = यतः / रत्नं नान्विष्यति = रत्नं न क्वचिदपि स्वप्रार्थयितारमन्विष्यति / किन्तु-तत् = रत्नं / मृग्यते = लाकैरेव अन्विष्यते / 'प्रार्थिभिरिति शेषः / [अर्थान्तरन्यासः / 'वंशस्थम् ] // 17 // आत्मनो गुमानवमनुते तच्छीला-आत्मगुणावमानिनी / तत्सम्बुद्वौआत्मगुणावमानिनि ! = हे स्वगुणगारवानभिज्ञे ! / सन्तापस्य निर्वाणे हेतुरेव हेतुका, तां = सन्तापनिर्वागहेतुकां = कामादिसन्तापशमनकारिणीं / शरदि भवांशारदी = शरत्कालभवां / ज्योत्स्नां = चन्द्रिकाम् / आतपत्रेण = छत्रेण / एवञ्च भवत्या सङ्गतः स राजा नूनमात्मानं धन्यमनुमंस्यते, का कथा ततस्तवाऽवधीरणाया इति भावः / नियोजिता = कामलेखे नियुक्ताऽस्मि सखीभ्याम् / विस्मृतौ निमेषौ रत्न किसी को खोजता नहीं है, किसी की प्रार्थना नहीं करता है, किन्तु उस रत्नकी खोज तो दूसरे लोग ही करते हैं, उसकी प्रार्थना करते हैं। अतः मैं ही तुम्हें खोजता 2 तुम्हारे पास आगया हूँ। करभ = पहुंचेसे कनिष्ठा अंगुली तक का हाथका नीचेका भाग। करभोरु = हाथीकी सूंडकी तरह क्रमशः स्थूल जङ्घावाली] // 17 // दोनों सखियाँ-हे अपने गुणों को कम समझनेवाली सखि ! सन्ताप को दूर करनेवाली, शरदृतु के चन्द्रमा की चन्द्रिका ( चाँदनी) को भला छाता लगाकर कौन हटाता है ? / शारद चन्द्रमा की ठण्डी 2 किरणों को, उसकी ताप को शान्त करनेवाली चाँदनी को, रोकने के लिए भी कोई छातालगाता है ? / नहीं। अतः वह राजा तुमको कैसे नहीं चाहेगा ? / कैसे रोकेगा ? / अवश्य चाहेगा। __ शकुन्तला-(हँसकर- ) सखियों ने विशेष अनुरोध से मुझे इस कार्य ( पत्रलेखन ) में लगा दिया है / ( बैठी हुई कविता का चिन्तन करती है)।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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