SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 164 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [ तृतीयोस्तनन्यस्तोशीरं, प्रशिथिलमृणालैकवलयं, प्रियायाः साऽऽवाधं, तदपि कमनीयं वपुरिदम् / समस्तापः कामं मनसिज-निदाघप्रसरयो ने तु ग्रीष्मस्यैवं सुभगमपराद्धं युवतिषु // 10 // स्तनन्यस्त इति / प्रियायाः = प्रेयस्याः, स्तनयोन्य॑स्तमुशीरं यत्र तत्स्तनन्यस्तोशीरं = पयोधरोत्सङ्गनिविष्टवीरणमूलं / प्रकर्षेण शिथिलो मृणालानामेको वलयो यत्र तत्-प्रशिथिलमृणालैकवलयं = सन्तापशुष्कशिथिलबिसैकवलयम् / आबाधया सहितं साबाधम् = सपीडं, व्यथितं / तदपि = तथापि / इदं वपुः = शरीरमेतत् / कमनीयं = मनोहरं / कामं = बाढं / मनसिजश्व, निदाघस्य प्रसरश्च, मनसिजनिदाघप्रसरौ,-तयोः-मनसिजनिदाघप्रसरयोः = कामातपलङ्घनयोः / तापासन्तापः। समः = तुल्य एव / कामताप-निदाघाभिगमनयोर्व्यथा तुल्येति यद्यपि सत्यमित्याशयः / तु= तथापि / 'तु स्याद्भदेऽवधारणे' इत्यमरः / ग्रीष्मस्य = निदाघप्रसरस्य / युवतिषु = तरुणीषु / एवम् = ईदृशम् / सुभगं = कमनीयतासम्पादकम् / अपराद्धं = सन्तापः / 'न भवतीति' शेषः / इयं च सन्तापेऽपि मनोहरा दृश्यते, लावण्यमात्रशेषा च, न चातपलङ्घनादीदृशी मनोहरता भवत्यतो नूनमियं कामसन्तापपीडितैवेति बाढमनुमीयत इति भावः। 'पीडाऽऽबाधा व्यथा दुःखम्' इत्यमरः। [अत्रापमानोपमेययोः स्मरातपसन्तापयोरेकस्याधिक्यकथनाव्यतिरेकालङ्कारः, 'युवतिषु'-इति सामान्यनिर्देशाट प्रस्तुतप्रशंसा च / अनुप्रासश्च / ] // 10 // मेरी प्रिया शकुन्तला के स्तनों पर उशीर ( खश ) रखी हुई है, हाथों में ढीले 2 मृणाल के ही वलय ( चूड़ी, कङ्कण, बाजूबन्द आदि ) बंधे हुए हैं / यद्यपि मेरी इस प्रियाका शरीर तो अवश्य पीड़ित है, परन्तु शरीरकी कमनीयता तो इसकी वैसी की वैसी बनी हुई है। इस दशा में भी यह अत्यन्त कमनीय मालूम हो रही है / यद्यपि काम का सन्ताप और ग्रीष्मका सन्ताप ( लू लग जाना ) समान हो सकता है, परन्तु घाम लगने से, या लू लगने से शरीरका सौन्दर्य और कमनीयता जैसी की तैसी कभी नहीं रह सकती है। अतः इसकी यह दशा तो काम के सन्ताप से ही है, ग्रीष्म के सन्ताप से नहीं है / अतएव यह मेरे ऊपर अनुरक्त होने से ही अस्वस्थ है-यही बात स्पष्ट प्रतीत हो रही है // 10 //
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy