________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 163 शकुन्तला. ( सखेदं-) किं बीजअन्ति मं पियसहीओ ? / [ ( सखेदं ) किं बीजयतो मां प्रियसख्यौ ?] / सिख्यौ--सविषादं परस्परमवलोकयतः ] / राजा--बलवदसुस्थशरीरा तत्रभवती दृश्यते / ( सवितर्क-) तरिक्रमयमातपदोषः स्यात् ?, उत यथा मे मनसि वर्तते ? / ( सामिला निर्य- ) अथवा कृतं सन्देहेनसुखं करोति / सुखमुत्पादयति किं 1 / नलिन्याः पत्रागां वातः= कमलिनीदलपवमानः / 'कि' मिति प्रश्ने / मां भवत्यौ बीजयतः किम् ?-इति प्रश्नः / किमर्थ मां बीजयतः, तापशान्तेरभावेन निष्फलमेतत् इति वा / एतेन विषयान्तरज्ञानशून्या विषयनिवृत्तिरूपा कामस्य षष्ठावस्था सूचिता / एतेन-विधूतं नाम प्रतिमुखाङ्गम् विधूतं स्यादरति'रित्युक्तं दर्शितम् / सविषादमिति / ईदृशोमवस्थां दृष्ट्वा विषादः सख्योः / अनिष्टाशङ्कया च परस्परावलोकनम् / बलवत् = अत्यन्तं / न सुस्थंन स्वस्थं शरीरं यस्याः सा असुस्थशरीरा = अप्रकृतिस्थवपुः / सवितर्कम् = विचारमभिनीय / मे मनसि वर्त्तते = 'कामसन्तापोऽयमिति मम चेतसि समायाति / कृतम् = अलम् / शकुन्तले ! कमलिनी लता के पत्तों की यह ठण्डी 2 हवा क्या तेरेको कुछ सुख व शान्तिदायक मालूम होती है ? / शकुन्तला-( बड़े ही दुःख के साथ ) हे सखियों! तुम लोग वृथा इस कमलिनी पत्र से मुझे हवा क्यों कर रही हो ? / मुझे तो इससे कुछ भी शान्ति नहीं मालूम हो रही है। [ दोनों सखियां बड़े खेद और उदासी व निराशभाव से परस्पर देखती हैं ] / राजा-यह शकुन्तला तो बहुत बीमार मालूम होती है / ( विचार करता हुआ) तो क्या घाम या लू लग जाने से इसकी यह दशा हुई है ? / अथवा-मैं मन में जो सोचता हूँ, वही बात तो नहीं है / ( मेरे प्रति इसका अनुराग व प्रेम का होना ही क्या इसका कारण है ?) / (बड़ो चाह से देखकर-) अथवा मेरे प्रति इसका अनुराग ही इसके इस अस्वास्थ्य का कारण है, इसमें सन्देह करना ही व्यर्थ है / क्योंकि