________________ 142 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [द्वितीयोविदूषकः-एस तुह रध-चक्करक्खीभूदोझि, जइ ण को बि आअच्छिम विग्धं करेदि। [एष तव रथचक्ररक्षीभूतोऽस्मि, यदि न कोऽपि आगत्य विनं करोति / दौवारिका-(प्रविश्य-) जअदु जअतु भट्टा / सज्जो रधो भत्तणो विजअप्पआणं अवेक्खदि / एस उण णअरादो देवीनं आणत्तिहरो करभओ आअदो / [ ( प्रविश्य ) जयतु जयतु भर्ती, सज्जो रथो भर्तुर्विजयप्रयाणमपेक्षते / एष पुनर्नगरादेवीनामाज्ञप्तिहरः करभकः आगतः / / राजा-( सादरं- ) किमम्बाभिः प्रेषितः / दौवारिक:-अध ई [अथ किम् ] / मित्याशयः / रथचक्रस्य-रक्षीभूतः = रक्षको जातः / 'तब पृष्ठतः स्थास्यामीति भयातिशयो दर्शितः। शूरत्वञ्च साटोपमात्मन उच्यत इति परिहासानुगुण्यमस्य वचसो बोध्यम् / विघ्नं करोतीति / यावन्न कोऽपि तर्जयति, मां तावदहं रक्षक इति-[ अहो! शौर्य विदूषकभट्टस्येति]-परिहासपेशलं वचो बोध्यमेतत् / यदा 'कोऽपि मम गमने विघ्नं यदि न करोती'त्युक्त्या द्वारपाल-करमकागमनं सूचितम् / ___सजः = सन्नद्धः / भत्त':= महाराजस्य / विजयप्रयाणम् = विजयार्थ गमनम् / अपेक्षते = प्रतीक्षते / देवीनां = राजमातृणाम् | आज्ञप्तिं हरति तच्छील: विदूषक-तो मैं आपके रथ के चक्र ( पहिया ) की रक्षार्थ रक्षक बनकर बैठता हूँ, यदि किसी ने आकर विघ्न न किया तो। अर्थात्-यदि लड़ने भिड़ने का कहीं काम पड़ेगा तो मैं भाग जाऊँगा / ( वाह रे रक्षक !) / अथवा यदि हमारी इस यात्रा में किसी ने आकर विघ्न नहीं किया तो। [द्वारपाल का प्रवेश] दौवारिक ( द्वारपाल )-महाराज का जय जयकार हो / आपका विजय रथ तैयार है, और आपके विजयार्थ प्रयाण की प्रतीक्षा कर रहा है। और यह करभक नामक हरकारा राजमाताओं की कोई सूचना लेकर राजधानी से आया है। राजा-(आदरपूर्वक) क्या हमारी माताओं ने उसे भेजा है ? / द्वारपाल-जी हाँ।