________________ 106 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [द्वितीयोविषक:-(तथास्थित एव ) भो 'वअस्स ! ण मे हत्थो पसरदि, ता वाआमेत्तेण २जआवीअसि / जअदु ( 3जअदु ) भवं / ( तथा स्थित एव ) भो वयस्य ! न मे हस्तः प्रसरति, तद्वाङमात्रेण २जापयिष्यामि / जयतु ( 3जयतु ) भवान् ] / राजा-(विलोक्य सस्मितं-) कुत्तोऽयं गात्रोपघातः ? विषक:-कधं 'कुदो'त्ति, स ज्जेव अच्छि भञ्जिअ अस्सु. कारणं पुच्छसि ? / मेव, इति-कामी = कामपरवशो मादृशो लोकः, स्वताम् = आत्मविषयतां, पश्यति = अनुसन्धत्ते / सम्भावयतीत्यर्थः / [अर्थान्तरन्यासः / 'विलासादिवे'ति हेतूत्प्रेक्षा / छेक-वृत्त्यनुप्रास-स्वभावोक्तयश्च ] // 2 // ___ तथा = दण्डमवलम्ब्य स्थित एव / वयस्येति / 'विदूषकेण वक्तव्यो वयस्येति च भूपति'रित्युक्तर्दुष्यन्तसम्बोधनं तत् / प्रसरति = उत्तिष्ठति / तत् = तस्मात् / वाङ्मात्रेण = वाचैव / जापयिष्यामि = विजयं ते अभिधास्यामि / ण्यन्तस्य जिधातो रूपम् / 'क्रीजीनां णा' वित्यात्वं / पुक् / / असूया पूर्वक जो 'भाग मत' 'थोड़ा ठहर' 'मैं नहीं जाऊँगी', मैं क्या तेरे पराधीन हूँ' इत्यादि वचन कहे थे, ये सब बातें मेरे को लक्ष्य करके, एवं मेरे प्रति अनुराग सूचन के लिए ही की गई हैं-कामासक्त मैं इस प्रकार अपने ऊपर ही सब समझकर, मनही मन प्रसन्न हो रहा हूँ। अहो ! कामी जन प्रिया की सब चेष्टाओं को इस प्रकार अपने ही ऊपर समझा करते हैं // 2 // विदूषक-(लाठी के सहारे ही खड़ा हुआ) हे सखे ! मेरा हाथ तो उठता नहीं है, अतः वाणी से ही आपको आशीर्वाद दे रहा हूँ। आपकी जय जयकार हो। राजा-( देखकर, कुछ हँसता हुआ ) यह तुम्हारा अङ्गवैकल्य कैसे हो गया है ? / विदूषक-'कैसे हो गया' यह आप क्या पूछते हैं ? / आप तो मानों अपने 1 'महाराअ' [ महाराज ] / 2 'जयीक्रियसे' / 3 कचिन्न /