SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 107 [कथं 'कुत इति' ? स्त्रयमेव अक्षि भङ्क्त्वा अश्रुकारणं पृच्छसि ?] / राजा-न खल्ववगच्छामि, भिन्नार्थमभिधीयताम् / विदूषकः-जं वेदसो खुजस्स लीलां विडम्बेदि, तं किं अत्तणो पहावेण, अधवा णईवेअस्स ? / [यद्वेतसः कुब्जस्य लीलां विडम्बयति, तत्किमात्मनः प्रभावेण ?, अथवा नदीवेगस्य ? 11 राजा-नदीवेगस्तत्र कारणम् / विदूषकः-मम वि भवं / [ ममापि भवान् ] / राजा-कथमिव ? / गात्रस्य-वपुषः / उपघातः = वैकल्यम् / अवगच्छामि = जानामि / भिन्नार्थ = स्फुटं। वेतसः = वजुलः / कुब्जस्य लीलां--कुब्जलीलां = गडुलविभ्रमं / वक्रतामिति यावत् / विडम्बयति = अनुकरोति, धत्ते / आत्मनः = स्वस्य / प्रभावेण = दोषेण / तत्र = वक्रतायां / कथमिव = कथन्तावत् ? / ही हाथ से ( मेरी ) आँख फोड़कर भी ( आँख में चोट पहुँचाकर भी) ये आँसू कैसे आ गये ?' यह पूछ रहे हैं ! / राजा-भाई, मैं तो तुमारी इस पहेली को नहीं समझा पा रहा हूँ। साफ 2 समझा कर कहो-क्या बात है?। - विषदूक--अच्छा बताइए-बेत जो टेढ़ा होकर कुबड़े की तरह हो जाता है, वह अपने से ही वैसा होता है, या नदी के वेग के कारण वैसा होता है ? / राजा-नदी का येग ही उसके टेढ़ेपन का कारण है। [ नदी के तट पर उगे हुए बेत नदी के जल में लटके रहने से नदी के प्रवाह के कारण झुक जाते हैं, अतः टेढ़े हो जाते हैं, और नदी का जल उनके उपर से बहता रहता है / ] विदूषक-इसी प्रकार मेरे अङ्गभङ्ग होने में भी आप ही कारण हैं। राजा-यह कैसे?
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy