________________ (63) निर्माण, प्रतिष्ठा, यात्रा संघ निकालना, आदि कार्यों में परबों रुपयों का व्यर्थ व्यय हुआ है और प्रति वर्ष लाखों का होता रहता है, ऐसे ही लाखों रुपये जैन समाज के इन मन्दिर मूर्ति और पहाड़ आदि की वापसी लड़ाई में भी हर वर्ष स्वाहा हो रहे हैं। प्रति वर्ष साठ हजार रुपये तो अकेले पालीताने के पहाड़ के कर के ही देने पड़ते हैं, भाई भाई का दुश्मन बनता है, भाई भाई की खून खराबी कर डालता है, यहां तक कि इन मन्दिर मूर्तियों के अधिकार के लिये भाई ने भाई का रक्तपात भी करवा दिया है जिसके लिये केशरिया हत्याकांड का काला कलंक मू० पू० समाज पर अमिट रूप से लगा हुआ है / इन मन्दिरों और मूर्तियों के लिये इनके भागमोद्धारक प्राचार्य देवरक्त से मन्दिर को धोकर पवित्र कर डालने की उपदेश धारा बहा कर जैनागम रहस्य ज्ञाता होने का नीत ( ? ) परिचय देते हैं / ऐसी सूरत में ये मन्दिर और मूर्तियें देश का क्या उत्थान और कल्याण करेंगे ??? जहां देश के अगणित बन्धु भूखे मरते हैं और तड़फ 2 कर अन्न और वस्त्र के लिये प्राण खो देते हैं वहां इन शूर वीरों को लाखों रुपये खर्च कर संघ निकालने में ही आत्म कल्याण दिखाई देता है, यह कहां की बुद्धिमत्ता है ? ___ इस देश में गुलामी का आगमन प्रायः मूर्ति पूजा की अ. धिकता से ही हुआ है और हुई है करोड़ों हरिजनों की पशु से भी बदतर दशा ? ऐसी स्थिति में यह मूर्ति पूजा त्यागने योग्य ही ठहरती है। कितने ही महानुभाव यह कहते हैं कि हम मूर्ति पूजा नहीं करते किन्तु मूर्ति द्वारा प्रभु पूजा करते हैं। किन्तु यह