________________ (64) कथन भी सत्य से दूर है / वास्तव में तो ये लोग मूर्ति ही की पूजा करते हैं, और साथ ही करते हैं वैभव का सत्कार यदि आप देखेंगे तो मालूम होगा कि जहां मूर्ति के मुकुट कुण्डलादि प्राभूषण बहुमूल्य होंगे, जहां के मंदिर विशाल और भव्य महलों को भी मात करने वाले होंगे जहां की सजाई मनोहर और आकर्शक होगी वहां दर्शन पूजन करने वाले अधिक संख्या में जायंगे, अथवा जहां के मंदिर मूर्ति के चमत्कार की झूठी कथाएं और महात्म्य अधिक फैल चुके होंगे वहां के ही दर्शक पूजक अधिकाधिक मिलेंगे ऐसे ही मंदिरों मूर्तियों की यात्रा के लिए लोग अधिक जावेंगे संघ भी ऐसे ही तीर्थों के लिए निकलेंगे, किन्तु जहां मामूर्ल झोंपड़े में प्राभूषण रहित मूर्ति होगी, जहां चित्रशाला जैर्स सजाई नहीं होगी, जहां की कल्पित चमत्कारिक किंवदंतिये नहीं फैली होगी, जहां के मंदिरों की व मूर्ति की प्रतिष्ठा नही हुई होगी ऐसी मूर्तियों व मंदिरों को काई देखेगा भी नहीं ! देखना तो दूर रहा वहां की मूर्तिये अपूज्य रह जायगी, वहां के ताले भी कभी 2 नौकर लोग खोल लिया करें तो भले ही किन्तु उस गांव में रहने वाले पूजक भी अन्य सजे सजाये आकर्षक मंदिरों की अपेक्षा कर इन गरीब और कंगाल मंदिरों के प्रति उपेक्षा ही रखते हैं ऐसे मंदिरों की हालत जिस प्रकार किसी धनाढ्य के सामने निर्धन और भूखे दरिद्रों की होती है बस इसी प्रकार की होती है। जिसके साक्षात् प्रमाण आज भी भारत में एक तरफ तो क्रोड़ों की सम्पत्ति वाले, बड़े 2 विलास भवन और रंग महल को भी मात करने वाले जैन मंदिर, और दूसरी ओर कई स्थानों के अपूज्य दशा में रहे हुए इन्हीं तीर्थंकरों की मूर्तियों वाले