________________ (62) सोचिये कि एक राजा अपनी प्रजा को राजकीय नियम तथा कायदे नहीं बतावे और उसके पालन करने की विधि से भी अनभिज्ञ रक्खे फिर प्रजा को वैसा नियम पालन नहीं करने के अपराध में कारावास में ढूंस कर कठोर यातना देवे तो यह कहां का न्याय है ? क्या ऐसे राजा को कोई न्यायी कह सकता है ? नहीं! बस इसी प्रकार तीर्थकर प्रभू मूर्ति पूजा करने की प्राज्ञा नहीं दे, और न विधि विधान ही बतावे, फिर भी नहीं पूजने पर दण्ड विधान करें? यह हास्यास्पद बात समझदार. तो कभी भी मान नहीं सकता। श्रतएव महाकल्प के दिये हुए प्रमाण की कल्पितता में कोई संदेह नहीं, और इसीसे अमान्य है। ___ इस प्रकार हमारे मूर्ति-पूजक बन्धुओं द्वारा दिये जाने घाले आगम प्रमाणों पर विचार करने के पश्चात् इनकी यु. क्तियों की परीक्षा करने के पूर्व निवेदन किया जाता है कि किसी भी वस्तु की सच्ची परीक्षा उसके परिणाम पर विचार करने से ही होती है, जिस प्रवृत्ति से जन-समाज का हित और उत्थान हो, वह तो अादरणीय है, और जोप्रवृत्ति अहित, पतन वैसे ही दुःखदाता हो वह तत्काल त्यागने योग्य है। ___ प्रस्तुत विषय (मूर्ति पूजा ) पर विचार करने से यह हेयपद्धति ही सिद्ध होती है, आज यदि मूर्ति-पूजा की भंय. करता पर विचार किया जाय तो रोमांच हुए बिना नहीं रहता। आजके विकट समय में देश की अपार सम्पत्ति का हास इस मूर्ति पूजा द्वारा ही हुआ है, मूर्ति के आभूषण मन्दिर