________________ (61) सर्व शास्त्रों की टीका लिखी थी वो सर्व विच्छेद होगई (3) महानिशीथ के विषय में मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० 187 में लिखा है कि ते सूत्र नो पाछलनो भाग लोप थई जवाथी पोताने जेटलुं मली श्राव्युं तेटलुं जिनाना मुजब लखी दीर्छ / सिवाय इसके महानिशीथ की भाषा शैली व बीच में आये हुप प्राचार्यों के नाम भी इसकी अर्वाचीनता सिद्ध क. रते हैं। इत्यादि पर से स्पष्ट होता है कि श्रागमविरुद्ध वीतराग वचनों का बाधक अंश शुद्धि तथा पूर्ण करने के बहाने से या अपनी मान्यता रूप स्वार्थ पोषण की इच्छासे कई महानुभावों ने सूत्रों में घुलाकर वास्तविकता को बिगाड़ डाला है, यही अधम कार्य प्राज भंयकर रूप धारण कर जैन समाज को छिन्न भिन्न कर विरोध कलह श्रादि का घर बना रहा जब कि आगमों में मूर्ति पूजा करने का विधिविधान बताने वाली श्राप्त प्राज्ञा के लिये विन्दु विसर्ग तक भी नहीं है, तब ऐसे स्वार्थियों के झपाटे में पाये हुए ग्रन्थों में फल विधान का उल्लेख मिले तो इससे सत्यान्वेषी और प्रायश्चि. त जनता पर कोई असर नहीं हो सकता। किसी भी समाज को देखिये उनका जो भी धर्म कृत्य है वे सभी विधि रूप से वर्णन किये हुए मिलेंगे, जिस प्रवृत्ति का विधि वाक्य ही नहीं वह धर्म कैसा? और उसके नहीं करने पर प्रायश्चित भी क्यों ?